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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
प्रत्याख्यान करने से जीव आस्रव - द्वार (कर्मों के आने के मार्ग) बन्द करता है तथा प्रत्याख्यान से इच्छाओं का निरोध होता है। प्रश्न है प्रत्याख्यान से किन चीजों का त्याग किया जाए? उपाध्याय केवलमुनि " कहते हैं कि दो प्रकार की चीजें त्यागने योग्य हैं।
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1. द्रव्य अन्न, वस्त्र, भवन, धन आदि ।
2. भाव : मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय आदि ।
द्रव्यत्याग और भावत्याग से ही सम्पूर्ण त्याग होता है। फल की आशा नहीं रखना भी त्याग है। आत्मख्याति टीका में कहा गया है कि फल की इच्छा छोड़ देने पर ज्ञानी द्वारा जो कर्म किया जाता है, उसे कर्म की बजाय अकर्म कहना अधिक उचित है। क्योंकि वैसा कर्म बंधनकारी नहीं है, अतः वह अकर्म है। गीता में फल की आशा से रहित पुरुषार्थ को ही निष्काम कर्मयोग कहा गया है। आचार-मीमांसा :
आचार्य कुन्दकुन्द ने सदाचरण, व्रत, नियम आदि का कहीं निषेध नहीं किया है। चूंकि समयसार द्रव्यानुयोग का ग्रंथ है, इसलिए उसमें आत्म-तत्त्व और अन्य तत्त्वों पर विस्तार से चर्चा हुई है। इस प्रकार समयसार में मुख्य रूप से आत्मा की विशद् चर्चा (आत्म-मीमांसा) हुई है । समयसार की आत्म-मीमांसा, आचार-मीमांसा का निषेध नहीं करती है, अपितु वह आचरण पक्ष ( आचार-मीमांसा) का आधार बनती है। आचार पक्ष का निषेध करने से तो स्वच्छन्दाचार ही बढ़ेगा। समयसार की आत्मपरक आचार-मीमांसा का विस्तार मूलाचार, नियमसार, अष्टपाहुड और अन्य ग्रंथों में देखा जा सकता है। श्वेताम्बर ग्रंथों में पांच समिति, तीन गुप्ति तथा पांच महाव्रतों के मजबूत आधारों पर आचार मीमांसा की विशद् चर्चा की गई है। कुन्दकुन्द कहते हैं कि जो आसक्ति, अभिमान और लालसा से मुक्त 읗 तथा करुणाभाव से संयुक्त हैं, वे चारित्ररूपी तलवार से पापरूपी खम्भे को नष्ट कर देते हैं।
द्रव्य चारित्र भी उपयोगी
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जैसे व्यवहार के पथ पर चलकर निश्चय को पाया जाता है। वैसे ही द्रव्य-आचरण के माध्यम से भाव - आचरण और भाव -शुद्धि को पाया जा सकता है। समयसार में आत्मा की विस्तार से चर्चा होने के बावजूद