________________
अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
आध्यात्मिक - भजन
श्रीजिनवर पद ध्यावें !
श्रीजिनवर पद ध्यानै जो नर, श्री जिनवर पद ध्यावें।।
तिनकी कर्मकालिमा विन्शौ, पर न ब्रह्म हो जावै। उपल अग्नि संजोग पाय जिमि, कुंचन विमल कहावै।।
__ श्रीजिनवर पद ध्यावै जो नर । चन्द्रोजल जस तिनको जग में, पण्डित जन नित गावैं। जैसे कमल सुगन्ध दशोंदिश, पवन सहज फैलावै।।
श्रीजिनवर पद ध्यावै जो नर । तिनहिं मिलन को मुक्ति सुन्दरी, चित अभिलाषा ल्यावें। कृषि में तृण जिम सहज उपजै, त्यों स्वर्गादिक पावै।।
श्रीजिनवर पद ध्यावै जो नर ।। जनमजरामृत दावानल ये, भाव सलिल बुझावै। 'भागचन्द' कहाँ ताई वरनै, तिनहिं इन्द्र शिर नावै।।
श्रीजिनवर पद ध्यावै जो नर ।
कविवर 'भागचन्द'