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________________ 68 अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 बताया गया है। जब इसकी व्याख्या का प्रश्न आया तो आचार्य शंकर को भी कहना पड़ा कि यहाँ अपेक्षा भेद से जो अज्ञेय है उसे ही सूक्ष्म ज्ञान का विषय बताया गया है। यही उपनिषदों का अनेकान्त है। इसी प्रकार श्वेताश्वतरोपनिषद् (1/7) में भी उस परम सत्ता को क्षर एवं अक्षर, व्यक्त एवं अव्यक्त ऐसे परस्पर विरोधी धर्मों से युक्त कहा गया है। यहाँ भी सत्ता या परमतत्व की बहुआयामिता या अनैकान्तिकता स्पष्ट होती है। मात्र यही नही यहाँ परस्पर विरूद्ध धर्मों की एक साथ स्वीकृति इस तथ्य का प्रमाण है कि उपनिषादकारों की शैली अनेकान्तात्मक रही है। यहाँ हम देखते हैं कि उपनिषदों का दर्शन जैन दर्शन के समान ही सत्ता में परस्पर विरोधी मतवादों के समन्वय के सूत्र भी उपलब्ध होते हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि उपनिषदकारों ने न केवल समन्वय के सूत्र भी उपलब्ध होते हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि उपनिषदकारों ने न केवल एकान्त का निषेध किया, अपितु सत्ता में परस्पर विरोधी गुणधर्मों को स्वीकृति भी प्रदान की है। जब औपनिषदिक ऋषियों को यह लगा होगा कि परमतत्व में परस्पर विरोधी गुणधर्मों की एक साथ ही स्वीकृति तार्किक दृष्टि से युक्तिसंगत नही होगी तो उन्होंने उस परमत्व को अनिर्वचनीय या अवक्तव्य भी मान लिया। तैत्तिरीय उपनिषद् (2) यह कहा गया है कि वहाँ वाणी की पहुँच नही है और उसे मन के द्वारा भी प्राप्त नहीं किया जा सकता (यतो वाचो निवर्तन्ते, अप्राप्य मनसा सह।) इससे ऐसा लगता है कि उपनिषद् काल में सत्ता के सत्, असत्, उभय और अवक्तव्य/ अनिर्वचनीय- ये चारों पक्ष स्वीकृत हो चुके थे। किन्तु औपनिषदिक ऋषियों की विशेषता यह है कि उन्होंने उन विरोधों के समन्वय का मार्ग भी प्रशस्त किया। इसका सबसे उत्तम प्रतिनिधित्व हमें ईशावास्योपनिषद् (4) में मिलता है। उसमें कहा गया है “अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनदेवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्" अर्थात् वह गतिरहित है फिर भी मन से वह देवों से भी तेज गति करता है। “तदेजति तन्नेजति तदूरे तद्विन्तिके", अर्थात् वह चलता है और नहीं भी चलता है वह दूर भी है, पास भी है। इस प्रकार उपनिषदों में जहाँ विरोधी प्रतीत होने वाले अंश है, वहीं उनमें समन्वय को मुखरित
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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