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________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 शोभायमान करती हैं। आचार्य शुभचन्द्र ने दुश्चारित्रधारी स्त्रियों के गुणों का प्रकाशन करते हुए भी सच्चारित्रवती, शीलवती स्त्रियों की निन्दा का निषेध करते हुए कहा है कि- संसार में निश्चय से कुछ ऐसी भी स्त्रियाँ हैं जो शम (शान्ति), शील (पातिव्रत्य), एवं संयम से विभूषित तथा आगमज्ञान व सत्य से संयुक्त हैं। ऐसी स्त्रियाँ अपने वंश की तिलक मानी जाती हैं- जिस प्रकार तिलक उत्तम अंग स्वरूप मस्तक के ऊपर विराजमान होता है और उससे समस्त शरीर की शोभा बढ़ जाती है, उसी प्रकार उपर्युक्त स्त्रियों के द्वारा उनके कुल की भी शोभा बढ़ जाती है। कितनी ही स्त्रियाँ पातिव्रत्य, महानता, सदाचरण, विनय और विवेक के द्वारा इस पृथ्वी तल को विभूषित करती है। जो मुनिजन संसार परिभ्रमण से विरक्त हो चुके हैं, आगम के पारगामी हैं, सर्वथा विषयों की इच्छा से रहित हैं, शान्तिरूप धन के स्वामी हैं तथा ब्रह्मचर्य व्रत के धारक हैं, उनके द्वारा यद्यपि स्त्रियों की निन्दा की गई है, तो भी जो स्त्रियाँ निर्दोष संयम, स्वाध्याय एवं चारित्र से चिह्नित हैं। इन गुणों से विभूषित हैं और लोक की शुद्धिभूत हैं, जनशुद्धि की कारण हैं, उनकी वैराग्य व प्रशम आदि रूप पवित्र गुणों का आचरण करने वाले महापुरुष कभी निन्दा नहीं करते हैं।43 इसी प्रकार भगवती आराधनाकार ने स्त्रियों के सच्चारित्र का बखान करते हुए उनके गुणों की प्रशंसा की है- जैसे अपने शील की रक्षा करने वाले पुरुषों के लिए स्त्रियाँ निन्दनीय हैं। वैसे ही अपने शील की रक्षा करने वाली स्त्रियों के लिए पुरुष निन्दनीय हैं। जो गुण सहित स्त्रियाँ हैं, जिनका यश लोक में फैला हुआ है तथा जो मनुष्य लोक में देवता समान हैं और देवों से पूजनीय हैं उनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम हैं। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और श्रेष्ठ गणधरों को जन्म देने वाली महिलाएँ श्रेष्ठ देवों और उत्तम पुरुषों के द्वारा पूजनीय होती है। कितनी ही महिलाएँ एक पतिव्रत और कौमार ब्रह्मचर्य व्रत धारण करती हैं। कितनी ही जीवन पर्यन्त वैधव्य का तीव्र दुःख भोगती हैं। ऐसी भी कितनी शीलवती स्त्रियाँ सुनी जाती हैं, जिन्हें देवों के द्वारा सम्मान आदि प्राप्त हुआ तथा जो शील के प्रभाव से शाप देने और अनुग्रह करने में समर्थ थीं। कितनी ही शीलवती स्त्रियाँ महानदी के जल प्रवाह में भी नहीं डूब सकीं और प्रज्वलित घोर
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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