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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 कारण/धनहीन, दीनहीन होता है प्रायः
और/धनिक वह/विषयान्ध मदाधीन!!१३ उक्त कथन के पीछे भाव यह है कि व्यक्ति को आवश्यकताओं के अनुरूप धन का अर्जन करना चाहिए, क्योंकि धन पाकर विषयान्ध और मदान्ध नहीं होना चाहिए।
__ आचार्य श्री यह भी कहते हैं कि जब तक व्यक्ति में सात्त्विक संस्कार न हों तब तक वह अर्थ आदि का सहयोग मिलने पर भी उच्च स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकता। वे लिखते हैं कि
यह ध्यान रहे/शारीरिक आर्थिक शैक्षणिक आदि सहयोग मात्र से/नीच बन नहीं सकता उच्च
इस कार्य का सम्पन्न होना/सात्त्विक संस्कार पर आधारित है।१४ अशांतिकारक पूंजीवाद- 'मूकमाटी' में पूंजीवाद को अशांति का अंतहीन सिलसिला बताया है। महाकवि स्वर्णकलश के माध्यम से कहता है कि
परतंत्र जीवन की आधारशिला हो तुम, पूंजीवाद के अभेद्य दुर्गम किला हो तुम
और/अशान्ति के अन्तहीन सिलसिला।१५ इसीलिए वे पूंजीवादियों को स्वर्णकलश के माध्यम से कृतज्ञ बनने की सलाह देते हुए कहते हैं
हे स्वर्ण कलश! एक बार तो मेरा कहना मानो/
कृतज्ञ बनो इस जीवन में।१६ 'मूकमाटी' में विलासिता की अवधारणा को तामसता भरी धारणा माना है और इसे समाजवाद के विरुद्ध माना है। वे लिखते हैं
स्वागत मेरा हो/मनमोहक विलासितायें मुझे मिलें अच्छी वस्तुएं ऐसी तामसता भरी धारणा है तुम्हारी फिर भला बता दो हमें/आस्था कहाँ है, समाजवाद में तुम्हारी?
सबसे आगे मैं/ समाज बाद में!१७ । धनिकों की दूषित सोच पर चोट- 'मूकमाटी' में मच्छर के माध्यम से