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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 85 भी राष्ट्र तब तक आर्थिक रूप सम्पन्न नहीं हो सकता जब तक वहाँ के अर्थहीन-गरीबजन आर्थिक रूप से सम्पन्न न हों। इससे एक साहित्य सर्जक की संवेदना और सहानुभूति भी गरीबों के पक्ष में दिखाई देती है। जीवन दृष्टि- आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए मानव जीवन में सही दृष्टि की आवश्यकता होती है । 'मूकमाटी' में कहा गया है कि जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण होता है जीवन निर्माण के लिए असि, मसि, कृषि, शिल्प, विद्या और वाणिज्य, इन षट्कर्मों को उपयोगी माना गया है। कुछ ऐसे ही सूत्रों का उल्लेख ‘मूकमाटी' में किया गया है। खनिज सम्पदा का उपयोग - राष्ट्र एवं समाज की उन्नति के लिए खनिज सम्पदाओं का दोहन कर उपयोग करने की परम्परा रही है, किन्तु इनका अतिदोहन नुकसानदेह होता है। धरती हमारे लिए सबसे बड़ी खनिज स्रोत है, जल भंडार भी; किन्तु आज स्थिति यह है कि यह धरती धरा रह गई न ही वसुंधरा रही न वसुधा । अतिवृष्टि भी हानिकर होती है, क्योंकि वह धरती के वैभव को बहा ले जाती है।" चोरी निंद्य आचरण - 'मूकमाटी' का रचयिता अस्तेय महाव्रती है। अतः उसका विश्वास है कि चोरी निंद्यकर्म है। जो लोग यह मानते हैं कि चोरी करके अर्थ सम्पन्न बना जा सकता है वे भ्रमित हैं, धर्म, समाज एवं कानून की दृष्टि में अपराधी हैं। धर्म कहता है कि जो परसम्पदा का हरण करता है वह नरक में जाता है। 'मूकमाटी' में कहा गया है कि पर-सम्पदा की ओर दृष्टि जाना / अज्ञान को बताता है और/ पर-सम्पदा हरण कर संग्रह करना मोह-मूर्च्छा का अतिरेक है / यह अति निम्न-कोटी का कर्म है स्व-पर को सताना है / नीच-नरकों में जा जीवन बिताना है।' अर्थ और परमार्थ- 'मूकमाटी' का विचार है कि अर्थ से परमार्थ को साधना चाहिए। नीतिकारों ने लिखा है कि
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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