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________________ 69 अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 में इन आवश्यकों के आन्तरिक वास्तविक स्वरूप की चर्चा अत्यन्त गहराई के साथ आचार्य कुन्दकुन्द ने व्याख्यायित की है। आचार्य वट्टकेर ने मूलाचार में सप्तम षडावश्यकाधिकार में इन षडावश्यकों के बाह्य व्यावहारिक स्वरूप का सम्यक् विश्लेषण अत्यन्त व्यवस्थित रूप से किया है। वे इन आवश्यकों के नाम भी क्रमशः व्यक्त करते हैं सामाइय चउवीसत्थव वंदणयं पडिक्कमणं। पच्चक्खाणं च तहा काउस्सग्गो हवदि छट्ठो॥ (मू.गा.१५) अर्थात् सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, और छठा कायोत्सर्ग- ये छह आवश्यक हैं। आचार्य वट्टकेर इस अधिकार के आरम्भ में ही प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं पूर्व प्रचलित आचार्य परम्परा के अनुसार और आगम के अनुरूप संक्षेप में यथाक्रम से आवश्यक नियुक्ति को कहूँगा आवासयणिज्जुत्ती बोच्छामि जहाकम समासेण। आयरियपरंपराए जहागदा आणपव्वीए॥ (म.गा.२) यहाँ देखने योग्य यह भी है कि षडावश्यकों में जो प्रारम्भ के चार आवश्यक हैं, वे अंगबाह्य (अनंगश्रुत) श्रुत के 14 भेदों में से प्रारम्भ के चार भेद रूप ज्यों के त्यों हैं। गोम्मटसार के श्रुतज्ञानमार्गणा के अन्तर्गत अंगबाह्य श्रुत के चौदह भेदों का वर्णन है "सामाइयचउवीसत्थयं तदो वंदणा पडिक्कमणं। वेणइयं किदियम्मं दसवेयालं च उत्तरज्झयणं॥ कप्पववहारकप्पाकप्पियमहकप्पियं च पुंडरियं। महापुंडरीयणिसिहियमिदि चोद्दसमंगबाहिरयं॥ अंगबाह्यश्रुत के चौदह भेद हैं- सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पाकल्प्य, महाकल्प, पुंडरीक, महापुंडरीक, निषिद्धिका। (गो.जीव.गा.368) दिगम्बर परम्परा में अंगबाह्य श्रुत के ये अंग उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु उसकी विषयवस्तु श्रुतपरम्परानुसार दिगम्बर जैनाचार्यों ने अपने
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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