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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 मथुरा, अहिच्छत्रा, तक्षशिला आदि नगर स्थित थे। गुप्तकाल के बाद अहिच्छत्रा का विशेष वृत्तान्त नहीं मिलता है। ई. की सातवीं सदी में पंचाल प्रदेश वर्धनवंशी हर्षवर्द्धन के साम्राज्य में सम्मिलित था। उस समय में चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार अहिच्छत्रा लगभग तीन मील के फैलाव में था। चीनी यात्री ने वृत्तान्त में लिखा है कि यहाँ के निवासी सत्यनिष्ठ थे और उन्हें धर्म और विद्याभ्यास से बड़ा प्रेम था। यहाँ उस समय 10 संघाराम थे जिनमें समितीय संस्था के हीनयान संप्रदायी 1000 भिक्षु निवास करते थे। नौ देवमंदिर भी थे जिनमें पाशुपत मत के मानने वाले 300 साधु रहते थे। वेनसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि अहिच्छत्र में बौद्ध मतावलम्बी लोग काफी संख्या में थे। ईस्वी की 9वीं शती के प्रारम्भ में कन्नौज प्रतिहार वंश के राजाओं का प्रभुत्व रहा। उ0प्र0 के मुरादाबाद जिले के सम्भल शहर से अमरोहा निवासी तौफीक अहमद कादरी चिश्ती ने लगभग ढाई वर्ष पूर्व एक ठठेरे से 10 कि0ग्रा0 भारवाला
और 25 मि0मी0 मोटा लम्बाई में दोहरा मुड़ा हुआ 60 से0मी0 से 61.5 से.मी. लम्बा और 48.5 से.मी. चौड़ा 'ताम्रपत्र' प्राप्त किया था जिसका वाचन डॉ. बुद्धि रश्मिमणि एवं इन्दुधर द्विवेदी (ए.एस.आई. दिल्ली) ने किया था। ताम्रलेख में अहिच्छत्रा भुक्ति (रामनगर, बरेली) जो प्रतिहार साम्राज्य का एक प्रदेश था उसके एक मंडल और विषय का नाम गुणपुर मिलता है। जो सम्भवतः बदायूं जिले का तहसील मुख्यालय गुन्नौर है। रूहेलखण्ड का यह इलाका प्राचीन जनपद के अन्तर्गत था और इस क्षेत्र में प्रतिहारों के शासन की स्थापना के बाद नए नगर भी बसे होंगे।
ग्यारहवीं सदी में इसी नगर में जैन महाकवि वाग्भट्ट ने नेमि निर्वाण-काव्य की रचना की। 14वीं सदी में आचार्य जिनप्रभ सूरि ने
अहिच्छत्रा की यात्रा की थी। कौशाम्बी नरेश के निकटतम वंशज वसुपाल नृप ने अहिच्छत्रा में भगवान् पार्श्वनाथ के एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। जैन तीर्थंकरों की गुप्तकालीन मूर्तियां भी अहिच्छत्रा में काफी संख्या में प्राप्त हुई, जो लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं। कौशाम्बी नरेश के राज्य में प्रभासगिरि (पभौसा) पर अनेक जैन मुनियों के निवास के लिए गुफाओं का निर्माण कराया। इससे विदित होता है कि अहिच्छत्रा जैन