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________________ अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 योगसाधना और कर्मसिद्धान्त -डॉ. जयकुमार जैन योगसाधना योगसाधना शब्द योग और साधना दो शब्दों के मेल से बना है। इनमें योग शब्द युज् धातु से घञ् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है। संस्कृत में 'युज् समाधौ' और 'युजिर योगे' दो धातुएँ उपलब्ध हैं। समाधि का अर्थ एकाग्रता और योग का अर्थ मिलाप या सम्बन्ध है। साधना शब्द णिजन्त सिध् धातु से युच् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ निष्पन्नता या पूर्ति है। इस प्रकार योगसाधना का अर्थ हुआ- एकाग्रता या सम्बन्ध की निष्पन्नता या पूर्ति। भारतीय परम्परा में योगसाधना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जहाँ ईश्वरवादी दार्शनिक योगसाधना को ईश्वर प्राप्ति का साधन मानते हैं, वहाँ अनीश्वरवादी दार्शनिक उसे परमात्म पद की उपलब्धि का। वेदों में प्राप्त तपस् शब्द कदाचित् योगसाधना के अर्थ में ही प्रयुक्त है। उपनिषद में तो स्पष्टतया तपस् के पर्यायवाची के रूप में ध्यान और समाधि शब्दों का प्रयोग हुआ है तथा उसे योग भी कहा गया है। वहाँ कभी तपस् को प्रधान मानकर समाधि, ध्यान एवं योग को उसका अंग कहा गया है तो बाद में योग दर्शन का प्रभाव बढ़ जाने पर समाधि, ध्यान एवं तपस् को उसका अंग मान लिया गया है। यदि हम वैदिकोत्तर वैदिक परम्परा की ओर दृष्टिपात करते हैं तो देखते हैं कि पातञ्जलयोग में महर्षि पतञ्जलि 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।' सूत्र लिखकर चित्तवृत्ति के निरोध को योग कहते हैं तो श्रीमद्भगवद्गीता में महर्षि व्यास ‘समत्वं योग उच्यते' कहकर समता को योग कहते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में योग के अट्ठारह प्रकार माने हैं- समता, ज्ञान, कर्म, दैव, आत्मासंयज्ञ, ब्रह्म, संन्यास, ध्यान, संयोग-वियोग, अभ्यास, ऐश्वरी, नित्याभियोग, शरणागति, सातत्य, बुद्धि, आत्म और भक्ति। गीता के प्रथम छ: अध्याय कर्मयोग प्रधान, मध्य के
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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