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________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 95 पुस्तक समीक्षा (1) आचार्य तुलसी का राष्ट्र को अवदान : प्रस्तोत्री- समणी कुसुमप्रज्ञा, प्रकाशक-जैन विश्व भारती, लाडनूँ (नागौर) राजस्थान, प्रथम संस्करण-2014, पृष्ठ-336, मूल्य : 180रुपये। __ आचार्य श्री तुलसी की जन्म शताब्दी के अवसर पर उनके राष्ट्रीय अवदानों को बोधगम्य करने के लिए प्रस्तुत पुस्तक की उपयोगिता असंदिग्ध है। तेरापंथ के आचार्य तुलसी का भारतीय संस्कृति और अणुव्रत आन्दोलन से जुड़ाव ने इन्हें महामानव की श्रेणी में स्थापित कर दिया। प्रस्तुत पुस्तकधर्म और राजनीति, चुनाव की अणुव्रत आचार-संहिता, देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री पं. नेहरू से वार्ताएँ, राष्ट्रीय समस्यायें, राष्ट्रीय एकता एवं उसकी चुनौतियाँ, राष्ट्र निर्माण में अहिंसक समाज- संरचना के आयाम आदि विषयों के माध्यम से आचार्य तुलसी के राष्ट्रीय व्यक्तित्व को मुखर किया गया है। लेखिका- समणी कुसुमप्रज्ञा- एक प्रतिभावान विदुषी एवं कलम की धनी हैं। पुस्तक के आध्यात्मिक सौंदर्य के साथ इसका गेटअप नयनाभिराम एवं निर्दोष छपाई से इसका भौतिक रूप भी सुन्दर है। (२) जिनांजलि : ('भक्तामर स्तोत्र' पर वैज्ञानिक ढंग से विचार करते हुए जैन दर्शन को साहित्यिक धरातल पर स्थापित करती हुई 48 कविताओं का संग्रह।) लेखक-राजेश जैन, प्रकाशक-नेशनल पब्लिीशिंग हाउस, 2-35 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002, संस्करण- प्रथम 2013, पृष्ठः मूल्य : 225रुपये। लेखक- नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन के जनरल मैनेजर हैं। वैज्ञानिक होते हुए साहित्य के प्रति अटूट अभिरुचि है। प्रस्तुत पुस्तक में भक्तामर स्तोत्र का सरल हिन्दी में मुक्त काव्यानुवाद है। लेखक ने ऊर्जा की शक्ति को, इन कविताओं में समाहित किया गया है। कविता की शब्दावली में वैज्ञानिक-पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग, लेखक का अनूठा प्रयोग है। शोध पूर्ण भूमिका "ब्रह्माण्ड ही प्रथम जिनेन्द्र हैं" विचारणीय है। पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी है। - समीक्षक, पं. निहालचंद जैन निदेशक- वीर सेवा मंदिर, नई दिल्ली
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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