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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 अनेन इति' ऐसी व्यत्पत्ति दी है। इसका यह अर्थ कि नीचे (अधो) को विस्तृत रूप से जो जानता है वह अवधि ज्ञान है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि अवधिज्ञानी अधोलोक के रूपी पदार्थों को अधिक जानता है, साथ ही तिर्यक् लोक और ऊर्ध्वलोक के सारे रूपी पदार्थों को भी जानता है।
हरिभद्र ने अवधि का अर्थ विषयज्ञान तथा मलयगिरि ने भी अवधि शब्द का अर्थ अवधान करते हुए इसे अर्थ का साक्षात्कार करने वाला आत्मा के व्यापार के रूप में प्रयुक्त किया है। जिनभद्र के मत से अवधान का अर्थ मर्यादा है। जिनभद्र द्वारा किया गया अर्थ ज्ञानवाचक है और हरिभद्र और मलयगिरि द्वारा किये गये अर्थ अवधिज्ञान की विशेषता बताते हैं।
___ अवधि शब्द का दूसरा अर्थ मर्यादा है। मर्यादा का अर्थ होता है सीमा अर्थात् जिस ज्ञान की सीमा हो। अवधिज्ञान की क्या मर्यादा (सीमा) है ? इसका समाधान है कि अवधिज्ञान मात्र रूपी पदार्थों को ही जानता है, इसका उल्लेख उमास्वाति, जिनभद्र, मलयगिरि आदि आचार्यों ने किया है। पूज्यपाद स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि रूप का अर्थ पुद्गल द्रव्य के साथ संबन्धित जीव समझना है।' अवधिज्ञान के द्वारा अरूपी पदार्थों को नहीं जाना जाता है यही उसकी मर्यादा है। इसका उल्लेख पूज्यपाद, जिनभद्रगणि और मलयगिरि आदि आचार्यों ने किया है।
प्रश्न- जब मति आदि चारों ज्ञान ही मर्यादा वाले हैं तो इस ज्ञान को ही अवधि अर्थात् मर्यादा वाला ज्ञान क्यों कहते हैं ? अकलंक इसका समाधान करते हुए कहते हैं कि जैसे गतिशील सभी पदार्थ गो आदि है लेकिन गो शब्द गाय के लिए ही रूढ़ हो गया है वैसे ही मति आदि चार ज्ञानों में इस ज्ञान के लिए ही अवधि शब्द रूढ़ हो गया है। धवला टीकाकार ने इस प्रश्न का समाधान करते हुए कहा कि अवधि तक चारों ज्ञान मर्यादित हैं, परन्तु अवधि के बाद केवलज्ञान अमर्यादित है, ऐसा बताने के लिए अवधि शब्द का प्रयोग किया गया है। धवला टीकाकार ने यहाँ पर अवधि को चौथे ज्ञान के रूप में