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________________ 47 अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 का वर्णन है। 3. श्रावकों के पंचाणुव्रतों के अतिरिक्त रात्रिभोजनत्याग को पृथक् रूप से छठे व्रत की संज्ञा प्रदान की है। 4. उपासकदशांग में उल्लिखित सप्तशीलव्रतों का अन्तर्भाव चारित्रसार में किया है। 5. साधु के उत्तरगुणों में गर्भित परीषहजय का विस्तृत विवेचन उपलब्ध 6. श्रावका का चारित्र-विकास ग्यारह प्रतिमाओं के माध्यम से होता है। इस ग्रंथ में व्रतों का तो संक्षिप्त कथन है किन्तु प्रतिमाओं का विशद् वर्णन किया है। 7. ध्यान-प्रकरण के अन्तर्गत धर्म्यध्यान में अनित्य आदि बारह भावनाओं का विवेचन किया है। 8. तपश्चरण द्वारा मुनियों को अनेक ऋद्धियाँ प्रकट होती हैं। इन ऋद्धियों का ग्रंथ में विस्तारपूर्वक कथन है। 9. प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह गृहस्थ प्रणीत प्रथम रचना है, क्योंकि ग्रंथ-सृजन का प्रचलन आर्ष (आचार्य) प्रणीत ही माना गया २. त्रिषष्टि लक्षण महापुराण :- इसे चामुण्डरायपुराण भी कहते हैं। चामुण्डराय ने इसे कन्नड़ भाषा में लिखा है, इसका रचनाकाल शक सं. 990 (ई.सन् 978) है। यह कन्नड़ भाषा का आद्य ग्रंथ है। इसकी भाषा सरल एवं बोधगम्य है। इसमें प्रमुख आचार्यों के नाम, उनकी परम्परा तथा ग्रंथकारों का उल्लेख मिलता है, साथ ही इस आधार पर इनकी कालगणना में भी सहजता होती है। गृद्धपिच्छाचार्य (कुन्दकुन्द), सिद्धसेन, समन्तभद्र, पूज्यपाद (पद्मनन्दि), कवि परमेश्वर, वीरसेन, गुणभद्र, धर्मसेन, कुमारसेन, नागसेन, आर्यनन्दि, अजितसेन, यतिवृषभ, उच्चारणाचार्य, माघनन्दि, शामकुण्ड, तेम्बुलूराचार्य, एलाचार्य, शुभनन्दि, रविनन्दि, जिनसेन आदि का उल्लेख इस महापुराण में मिलता है। इसमें लेखक ने अनेक आचार्यों द्वारा रचित संस्कृत-प्राकृत भाषा के अनेक श्लोकों एवं गाथाओं का उल्लेख किया है। इस ग्रंथ के नाम से ज्ञात होता है कि इसमें श्रेष्ठ शलाका पुरुषों (24 तीर्थकर+12
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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