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अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 पत्र नं. २ 'अनेकान्त' जैन विद्या एवं प्राकृत वाड्.मय में सन्निविष्ट शोध-खोज के विविध पक्षों को समीक्षा सिद्धान्त के मानकों पर यथावत् प्रस्तुत कर रहा है। आप सम्पादन में वाड्.मय के विविध पक्षों को उदार दृष्टि से सम्यक्त-अथ च अभिषिक्त करते हुए प्रस्तुत करते हैं। एतदर्थ अनेकाशः बधाइयाँ।
आपकी इस पत्रिका में 'युगवीर गुणाख्यान' के स्थायी-स्तम्भ की शुरूआत बहुत अच्छी पहल है। इसके माध्यम से आप शोध-संसार को यह सन्देश भी पहुँचा रहे हैं कि'न हित कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति।'
-प्रो. डॉ. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु', 28, सरोज सदन, सरस्वती कालोनी, दमोह (म.प्र.) 470661
पत्र क्र.३ मान्य सम्पादक जी- 'अनेकान्त'
विगत 3-4 वर्षों से, वीर सेवा मंदिर-शोध संस्थान की प्रतिनिधिपत्रिका 'अनेकान्त' शोध त्रैमासिकी नियमित मिल रही है, जिससे वीर सेवा मन्दिर की गतिविधियों से भी जुड़ गया हूँ। यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि अनेकान्त अंक 68/3 (जु.-सित. 15) से 'युगवीर-गुणाख्यान' नाम से स्थायी स्तम्भ शुरू किया गया है, जो पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार' साहब का वीर सेवा मंदिर को दिये यशस्वी अवदान का मूल्यांकन व उन्हें सच्ची श्रद्धाञ्जलि है। 'मेरी भावना' जैसी अमर कृति रचकर उन्होंने अपना नाम भी अमर कर लिया।
अनेकान्त में प्रकाशित आलेख जैनदर्शन का ज्ञान कराने में दीप-स्तम्भ है। अनेक बधाई एवं सम्पादक डॉ. जयकुमार जैन व मेरे मित्र संपादक मण्डल सदस्य पं. निहालचंद जैन को बहुत-बहुत साधुवाद।
- एस. सी. जैन, संयुक्त कलेक्टर (से.नि.), शांति विहार कालोनी, मकरोनिया, सागर-470 004