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________________ अनेकान्त 68/4 अक्टू - दिसम्बर, 2015 इसके साथ ही शोक, भय, खेद, ग्लानि और आकुलता को भी छोड़ दे तथा बल एवं उत्साह को जागृत करके आगम वचनों द्वारा मन को प्रसन्न रखे। सल्लेखना के साथ वर्तमान या आगामी भव की किसी भौतिक कामनाओं की पूर्ति को नहीं जोड़ना चाहिए। सल्लेखनाधारक की संसार के किसी भोगोपभोग की या इंद्रादि पद प्राप्ति के लिए राग और अप्राप्ति के लिए द्वेष जैसी जघन्य इच्छाएं भी नहीं होनी चाहिए। उसके भीतर सिर्फ समाधिपूर्वक पूर्ण जाग्रतावस्था में देह - मुक्ति की ही भावना रहनी चाहिए। इसी साध्य के लिए उसने जीवन भर व्रत - संयम - तपादि के पालन का घोर प्रयत्न किया है। और अंतिम समय में भी वह उस प्रयत्न से चूकना नहीं चाहता है । सल्लेखना की सम्पूर्ण प्रक्रिया के संबंध में अनेक जैन शास्त्रों में विस्तृत और विशद् विवेचन उपलब्धा है । सल्लेखना की रक्षा के उपाय वस्तुतः नश्वर से शाश्वत वस्तु का लाभ हो तो कौन विवेकी पुरुष उसे छोड़ने को तैयार होगा ? अतएव सल्लेखना धारकों को निम्नलिखित पाँच दोषों से स्वयं को बचाना चाहिए - 85 1. जीवन की आशंसा 2. मरण की आशंसा 3. मित्र के प्रति अनुराग 4. भुक्त भोगों की स्मृति और 5. आगामी भव में अच्छे भोगों की प्राप्ति की कामना । सल्लेखना काल में इन पाँच विषयों की आकांक्षा कदाचित् भी नहीं करना चाहिए। इन दोषों के चिन्तन से सल्लेखना बिगड़ सकती है। अतः साधक बड़ी सावधानीपूर्वक इनसे बचते हुए आत्मध्यान में लीन रहे। सल्लेखना आत्मघात ( आत्महत्या) नहीं है - कुछ भौतिकवादी विद्वान् जिन्हें किसी धर्म के किसी भी आचार विशेष के मर्म या उद्देश्य की गहराई समझने की उर्सत नहीं, ऐसे लोग इस जीवन की उच्चतम साधना रूप सल्लेखना या समाधिमरण को आत्महत्या जैसा जघन्यकृत्य तक कहने से नहीं चूकते। किन्तु आत्महत्या को कायरतापूर्ण घृणित कार्य कार्य बतलाने वाला और अहिंसा को सर्वोच्च धर्म (आचार) या प्राण मानने वाले जैनधर्म के किसी भी साधना पक्ष से कल्पना कैसे की जा सकती है कि उसमें हिंसा का लेशमात्र निहित हो ?
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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