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अनेकान्त 68/4 अक्टू-दिसम्बर, 2015
इसमें देवनन्दी (पूज्यपाद) के तीन ग्रन्थों का उल्लेख सन्निहित हैकाय (शरीर) के दोषो को दूर करने वाला वैद्यक शास्त्र, वाग्दोषों को दूर करने वाला व्याकरण ग्रन्थ (जैनेन्द्र व्याकरण) और चित्त (मन) के दोषों को दूर करने वाला ग्रन्थ समाधि तंत्र । इनमें प्रथम वैद्यक ग्रन्थ उपलब्ध नही है, जबकि शेष दोनों विषयों के ग्रन्थ उपलब्ध हैं। गोम्मटदेव मुनि ने पूज्यपाद द्वारा वैद्यामृत नामक ग्रन्थ की रचना किए जाने का उल्लेख किया है।' पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित शालाक्य तंत्र का उल्लेख भी कल्याणकारक ग्रन्थ में है।' इसी प्रकार पार्श्व पण्डित ने भी पूज्यपाद स्वामी द्वारा आयुर्वेद के ग्रन्थ की रचना किए जाने का संकेत मिलता है । '
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आगे उग्रादित्याचार्य लिखते हैं- " श्री पूज्यपाद स्वामी द्वारा शालाक्य तंत्र पात्रकेसरी मुनि ने शल्यतंत्र, आचार्य सिद्धसेन के द्वारा अगद तंत्र एवं
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भूत विद्या, दशरथ मुनि के द्वारा काय चिकित्सा, मेघनाचार्य के द्वारा बालरोगाधारित कौमार भृत्य और सिंहनाद मुनीन्द्र द्वारा बाजीकरण एवं दिव्यामृत (रसायन) तंत्र का निर्माण किया गया। परन्तु इनमें से कोई भी ग्रन्थ वर्तमान में विद्यमान नहीं है। किन्तु इन ग्रन्थों का आधार लेकर कल्याणकारक ग्रन्थ है जो लगभग ईसा की 9वीं शताब्दी में लिखा गया ।
दिगम्बराचार्य श्री उग्रादित्य ने आन्ध्रप्रदेश के प्राचीन चालुक्य राज्य में उक्त कल्याणकारक ग्रन्थ की रचना की थी। वर्तमान में यही एकमात्र ऐसा उपलब्ध ग्रन्थ है जिसमें प्राणावाय पूर्व का अनुसरण करते हुए सम्पूर्ण अष्टांग आयुर्वेद का वर्णन विस्तार से किया है। 14वीं शताब्दी के मुनि यशा कीर्ति द्वारा अपभ्रंश भाषा में लिखित "जगत् सुन्दरी प्रयोगशाला" नामक ग्रन्थ का उल्लेख स्व. श्री जुगलकिशोर मुख्तार ने अनेकान्त वर्ष 2 किरण 2 (अश्विन वीर निवाण 2465) में प्रकाश डाला है। इसी प्रार सन् 1360 के आसपास जैन कवि मंगराज के द्वारा लिखित "खगेन्द्रमणि दर्पण' नामक ग्रन्थ की जानकारी मिलती है जो कन्नड़ लिपि में 300 पृष्ठों का है, स्थावर विष की चिकित्सा पर आधारित है । मध्ययुग में प्राणावाय पूर्व की परम्परा समाप्त हो गई थी। इसके कुछ कारण थे। एक तो जैन आयुर्वेद-लौकिक विद्या के रूप में मान्य किया गया जो महाव्रती दि. साधुओं के लिए सीखना अभीष्ट नहीं था। क्योंकि उनके लिए लौकिक विद्यायें निष्प्रयोजन मानी जाती थीं। संयमशील तपःपूत साधुओं का जीवन अनुशासित होने से उनका