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________________ अनेकान्त 68/4, अक्टू-दिसम्बर, 2015 यथा तरूणां फलपाकयोगो मतिप्रगल्भैः पुरुषैर्विधेयः। तथा चिकित्साप्रविभागकाले दोषप्रपाको द्विविधः प्रसिद्धः॥ जिस प्रकार वृक्ष का फल स्वयं भी पकता है और विभिन्न उपायों से भी। उसी प्रकार प्रकुपित दोष भी चिकित्सा और कालक्रम दोनों से पकते हैं। आहार का स्वास्थ्य पर प्रभाव "अनारोग्यमनायुष्यमस्वयं चाति भोजनात्" अर्थात् अधिक मात्रा में भोजन करने से अनारोग्य (रोग) अनायुष्य (अल्पायु) और अस्वर्ग्य (नरक) की प्राप्ति होती है। अधिक मात्रा में सेवन किया गया मधुर भोजन भी सम्यक्पे ण परिपाक नहीं होता। मधुरपि बहुस्वादितमजीर्ण भवति। अमृतमपि बहुपीतं विषायते। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी कहता है कि दूध, मक्खन, घी, सूखे मेवा आदि का अधिक मात्रा में सेवन से शरीर की धमनियों में कोलेस्ट्रोल हानिकारक तत्त्व संगृहीत हो जाता है जिससे रक्तचाप एवं हृदयाघात जैसे विकार उत्पन्न हो जाते हैं। आयुर्वेद में सात्त्विक आहार को सही बताया है। स्वस्थ मन-मस्तिष्क एवं हृदय के लिए सात्त्विक आहार की उपयोगिता असंदिग्ध है। उपवास उपवास या अनशन का जैनधर्म में जिना महत्त्व है आयुर्वेद में उसका महत्त्व उससे कम नहीं है। आयुर्वेद में इसे 'लंघन' शब्द से व्यवहृत किया गया है। जैनधर्म में छह बाह्य तत्त्व बताये हैं जिनमें अनशन, ऊनोदर और रस परित्याग इन तीन का सीधा संबन्ध आहार से है। उपवास और ऊनोदर शरीर के लिए उपयोगी, हितकारी एवं उपादेय है। जैनधर्म में अनशन तप के विषय में कहा गया है। यह मन और इन्द्रियों को जीतने वाला, आत्मा में निवास करता हुआ इहलोक/परलोक के सुख का दाता है। आयुर्वेद के चिकित्सा- ग्रन्थ-चरक संहिता में महर्षि चरक कहते हैं लंघनेन क्षयं नीते दोषे संधुक्षतेऽनले। विज्वरत्वं लघुत्वं च क्षुच्चैवास्योपजायते॥ (चरक संहिता-३/१३९)
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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