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________________ अनेकान्त 68/1, जनवरी - मार्च, 2015 सभ्यता, संस्कृति और अंततः विश्व शांति में मदद कर सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि रुग्ण खुद दवा के पास आए यानि इस समाधान को स्वीकार करने के लिए हमें आगे आना होगा। तमाम राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और वैश्विक समस्याओं पर विचार करते समय अगर दूसरे के विचार को सहिष्णुतापूर्वक सुना जाए और उसके विषय में केवल अपनी धारणाओं से नहीं बल्कि अन्य पक्षों की धारणाओं से भी देखा जाए तो समस्या का निराकरण सुगम हो जाएगा। यही मानव समाज को और विश्व को आगे ले जाने की दिशा का सूचक भी होगा। अन्यथा अपने सिद्धांत पर हठ ठानकर और दूसरों को अनसुना करने से हर स्तर पर अंततः समाज का ही नुकसान है। 28 - २०ए, समसपुर जागीर, पाण्डव नगर, दिल्ली-९२ आवश्यक सूचना अनेकान्त का “जैनधर्म एवं आयुर्वेद ” विशेषांक अनेकान्त के नियमित विद्वान लेखकों एवं विषय के अधिकारी विद्वानों को सूचित किया जाता है कि अनेकान्त - अंक 86/4 (अक्टू. - दिसम्बर 2015 ) उक्त विशेषांक के रूप में प्रकाशित होने जा रहा है। अस्तु विषय के अधिकारी विद्वानों से अनुरोध है कि तत्संबंधी विषय का मौलिक एवं अप्रकाशित शोधालेख - संपादक, वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ के पते से शीघ्र भेजने की कृपा करें। आलेख भेजने की अंतिम तिथि जून २०१५ है । अंतिम तिथि के बाद प्राप्त लेखों पर विचार करना संभव नहीं हो सकेगा। आदेशानुसार जैन सम्पादक- डॉ. जयकुमार
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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