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________________ अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 लेश्या का विवेचन है। निक्षेप की अपेक्षा से भी विवेचन है | 30 चारो गतियों में लेश्या की तरतमता उत्तराध्ययन, गोमटसार एवं मूलाचार आदि ग्रन्थों के अनुसार चारों गतियों में लेश्या की तरतमता इस प्रकार सन्दर्भित है - 43 १. नरकगति- रत्नप्रभादि नरक की भूमियों में जघन्य कापोती, मध्यम कापोती, उत्कृष्ट कापोती लेश्या तथा नारकी जीवों का वर्ण जघन्य नील, मध्यम नील, उत्कृष्ट नील तथा जघन्य कृष्ण वर्ण और उत्कृष्ट कृष्ण वर्ण वाली लेश्या है। लेश्याकोश के अनुसार इस विषय में और भी अनुसंधान करने की आवश्यकता है। २. देवगति - भवनवासी आदि देवों के जघन्य तेजो लेश्या है। दो स्वर्गों में मध्यम तेजो लेश्या है, दो में उत्कृष्ट तेजोलेश्या है, जघन्य पद्मलेश्या है, छः में मध्यम पद्मलेश्या है, दो में उत्कृष्ट पद्मलेश्या है। और जघन्य शुक्ल लेश्या है, तेरह में मध्यम शुक्ल लेश्या है और चौदह विमानों में चरम शुक्ल लेश्या है। ३. तिर्यंच और मनुष्यगति - एकेन्द्री, असंज्ञी पंचेन्द्री के तीन अशुभ लेश्या होती है, असंख्यात वर्ष की आयु वाले भोगभूमि या कुभोगभूमि या जीवों तीन शुभ लेश्या है और बाकी के कर्मभूमि या मनुष्य तिर्यंचों के छहो लेश्या होती है।" गुणस्थानों में लेश्या जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भाग-3 के अनुसार कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या वाले जीव एकेन्द्रिय से लेकर असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक होते हैं। पीतलेश्या और पद्मलेश्या वाले जीव संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर अप्रमत्त संयत गुणस्थान तक होते हैं। शुक्ल लेश्यावाले जीव संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगकेवली गुणस्थान तक होते हैं। तेरहवें गुणस्थान के आगे के सभी जीव लेश्यारहित होते हैं । 2 लेश्या परिवर्तन सम्बन्धी नियम प्रज्ञापनासुत्त के अनुसार एक लेश्या दूसरी लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उस रूप, वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श रूप में परिणत होती है। वह उसकी लेश्यागति कहलाती है। अशुभ लेश्या सम्बन्धी तीव्रतम, तीव्रतर और तीव्र- ये तीन स्थान और शुभ लेश्या सम्बन्धी मन्द, मन्दतर, मन्दतम- ये तीन स्थान हैं।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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