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________________ अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 करता है, वही मोक्षमार्गी है। वर्तमान में वेश बनाकर कठोर से कठोर क्रियाओं को करते हुए खोटे तप तपे जा रहे हैं, उनसे संसार समाप्त होने वाला नहीं है इसलिए जिनमत में प्रतिपादित तप का आचरण ही कर्मक्षय का निमित्त है। तप मुख्य रूप से मुनि आचरण का विषय है। मुनि ही महाव्रती होते हैं। सकल संयम महाव्रत कहा जाता है। प्रवचन पर महाव्रत को समझाते हुए कहते हैं- जिनव्रतों को महापुरुष धारण करते हैं, उन व्रतों का नाम महाव्रत है। अथवा जिनव्रतों को धारण करने से आत्मा महान् बन जाती है, उसका नाम महाव्रत होता है। सकलव्रती की तपस्या ही फल देने वाली होती है क्योंकि वह निर्दोष रीति से की जाती है। आत्मशोधन की साधनभूत प्रक्रिया तप को बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का कहा गया है६ आचार्य अमृतचन्द्रदेव पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में सकलचारित्र के प्रतिपादन में अनशन, अवमौदर्य विविक्तशयासन, रसत्याग, कायक्लेश, वृत्तेःसंख्या को बाह्य तप कहा है। इनसे मन अशुभ को प्राप्त नहीं होता है। श्रद्धा उत्पन्न होती है तथा योग मूलगुण हीन नहीं होते हैं। (मूलाचार ३५८) बाह्य तपों और अभ्यंतर तपों की संख्या और संज्ञा तो सभी आचार्यों ने समान रूप से स्वीकार की है किन्तु क्रम में भेद पाया जाता है जैसे मूलाचार कार ने निम्न क्रम लिखा है अणसण अवमोदरियं रसपरिचाओ य वुत्ति परिसंख्या। कायस्स य परितावो विवित्तसयणासणंछठें।। मूलाचार ५/१४९ अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग कायक्लेश तथा विविक्तशयनासन से बाह्य तप के छह भेद है। तत्त्वार्थसूत्रकार अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशयासनकाय क्लेशाः बाह्य८ तपः। अर्थात् अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशयासन और कायक्लेश यह बाह्य तप है। मूलाचार की परम्परा का अनुसरण तत्त्वार्थसूत्रकार ने संज्ञा के अर्थ में किया है किन्तु मूलाचार में कायक्लेश का उल्लेख पांचवे क्रम पर और विविक्तशयासन का छठे स्थान पर है। आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने पुरुषार्थसिद्धयुपाय में विविक्तशयासन को तृतीय स्थान पर, कायक्लेश को
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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