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________________ 81 अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 वे तप से ही सम्प्राप्त होती हैं। तप से आत्मा में एक अद्भुत तेज का संचार होता है। इसलिए आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने तप को स्वीकार करने को कहा बौद्धसाहित्य के अध्ययन से ज्ञात होता है कि तथागत बुद्ध ने अपने साधनाकाल के प्रारंभ में छः वर्ष तक बहुत ही उग्र तप की साधना की थी। जिससे उनका शरीर अत्यन्त कृश हो गया था, उन्होंने केशलुञ्चन आदि भी किया था। अनशन तप की उपेक्षा कर उसे पूर्ण रूप से न मानकर मध्यममार्ग का उपदेश दिया किन्तु तप का सर्वथा निषेध नहीं किया। उन्होंने चार सर्वश्रेष्ठ मंगल माने हैं, उनमें तप को भी एक मंगल माना और उस तप को सर्वप्रथम स्थान दिया। तथागत ने यह भी कहा- “मैं श्रद्धा का बीज वपन करता हूँ और तप की उस पर दृष्टि होती है। एक बार विंबसार से कहा- मैं तपस्या करने के लिए जा रहा हूँ क्योंकि उस मार्ग में मेरा मन लगता है। अंगुत्तर निकाय के दिट्ठिबद्ध सुत्त में तप और व्रत करने की प्रेरणा दी है। संयुक्तनिकाय में कहा है कि तप और ब्रह्मचर्य बिना पानी का अंतरंग स्नान है। जो जीवन के विकारों के मल को धोकर साफ कर देता है। उक्त कथनों से स्पष्ट है कि बौद्ध साहित्य में तप का विशेष महत्त्व प्रतिपादित है। वैदिकसाहित्य में भी तप का वर्णन भरा पड़ा है। वैदिकसंहिताओं में तप के अर्थ में तेजस् शब्द व्यवहृत हुआ है। जीवन को तेजस्वी और वर्चस्वी बनाने के लिए तप की साधना के लिए प्रेरणा दी गई है। शतपथ ब्राह्मण में कहा है तप रूप तेजः शक्ति से मानव संसार में विजयश्री को वरण करता है और समृद्धि उसके चरण चूमने को लालायित रहती है। कृष्णयजुर्वेद, तैत्तिरीय ब्राह्मण में उल्लेख मिलते हैं कि प्रजापति ने तप किया और और उसी के प्रभाव से सृष्टि की ऋषियों ने कहा है तप ही मेरी प्रतिष्ठा है।३ श्रेष्ठ और परमज्ञान तप से सही प्रगट होता है। इसी प्रकार सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथ और वैदिकपुराण, आयुर्वेद शास्त्रों में तप की महिमा वर्णित है। यह भारतीय संस्कृति का प्राण तत्त्व है। अतः विस्तार से वर्ण्य है। जैनधर्म में तप की विशेष महत्ता है, इसलिए जैनाचार्यों ने तप का विस्तार से वर्णन किया है। तप चारित्र का प्रधान अंग है। चारित्र मोक्षप्राप्ति का चरम साधान है। अतः मुमुक्षुओं के कल्याणार्थ सभी श्रावकाचार एवं श्रमणाचार
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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