SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 71 अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 | कान्तार-चर्या में सिद्धान्त विरुद्ध साधन-सामग्री देखकर चन्द्रगुप्त मुनि को लगातार अन्तराय होता रहता है किन्तु चौथे दिन उन्हें निर्दोष आहार प्राप्त हो जाता है। अर्थात् उस यक्षिणि ने कंकण एवं कटक से विभूषित अपने हाथों में धारण किये हुये छहरस सहित चार प्रकार के आहार उन मुनिराज को दिखलाए। उन्हें देखकर बहुगुणी मुनिवर-चन्द्रगुप्त ने अपने मन में विचार किया कि यह अयुक्त है (ठीक नहीं है, इसमें कुछ गड़बड़ है) अतः उन्होंने आहार ग्रहण नहीं किया। उसे अलाभ (अन्तराय) मानकर लौट गये। गुरु के निकट जाकर, प्रणाम कर उन्हें यह समस्त वृतान्त कह सुनाया और प्रत्याख्यान लेकर स्थित हो गये। __ दूसरे दिन, उन्होंने पुनः वन-भ्रमण की (कान्तार-चर्या) उत्कण्ठा की और जब वे अन्य दूसरी दिशा में पहुंचे, तब उन्होंने वहाँ सिद्ध की हुई (शाला) रसोई देखी, जो नाना प्रकार के रसों से युक्त थी। किन्तु वह रसोई (तैयार) बिना युवती के थी। इसी कारण मुनिराज ने उस पर तत्काल विचार किया और उस दिन भी अन्तराय हुआ मानकर वे गुरु के आश्रम में लौटे और अभिवादन कर उनको समस्त-वृतान्त निवेदित किया। तब मुनि भद्रबाहु ने उन चन्द्रगुप्त को भव्य-भव्य (बहुत-ठीक-बहुत-ठीक) कहा। पुनः चन्द्रगुप्त पवित्र-भावना से (सम-वीतरागी परिणामों से) उपवास धारण कर स्थित हो गये। __अन्य (तीसरे) दिन वे चन्द्रगुप्त मुनि अन्य दिशा में कान्तार-चर्या हेतु गये। वहाँ वन के बीच में उन्होंने एक अकेली स्त्री देखी। उस अकेली स्त्री ने अपने हाथों में जलयुक्त मिट्टी का घड़ा लेकर उनका "ठा-ठा" (अत्र तिष्ठ-अत्र तिष्ठ आदि) कहकर पडगाहन किया। 'अकेली स्त्री से आहार लेना भी अयुक्त है', ऐसा विचारकर मुनिराज चन्द्रगुप्त ने फिर आहार-त्याग किया और जाकर अपने गुरुदेव से निवेदन कर दिया। तब गुरु ने कहा कि "तुम्हें पुण्यबन्ध हुआ, क्योंकि तुमने व्रत की छाया (शोभा) को अभंग (निरतिचार) रखा (रक्षा की) है।" निर्मल चित्त चन्द्रगुप्त-मुनि भिक्षा के निमित्त चतुर्थ दिन अन्य दिशा में पहुँचे। यहाँ उन्होंने गोपुर तथा प्राकारों से युक्त चौराहों से रमणीक तथा
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy