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________________ अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 बुन्देलखण्ड की जैनमूर्तिकला (उत्तरप्रदेश के संदर्भ में) - लाल बहादुर सिंह सोमवंशी भारतीय इतिहास में बुन्देलखण्ड भारतवर्ष का हृदय है। यह भाग उत्तरी अक्षांश 23°-45 तथा 26°-50' और पूर्वी देशान्तर 770-52 तथा 82° के मध्य स्थित है।' भू-भाग का "बुन्देलखण्ड" नाम लगभग चौदहवीं शती ई0 में पड़ा। इसके पूर्व यह क्षेत्र चेदि, जुझौति, जेजाकभुक्ति आदि नामों से जाना जाता था। पृथ्वीराज चौहान के शिलालेख से यह विदित होता है कि 12वीं शताब्दी तक इस देश का नाम जेजाक भुक्ति था। बुन्देल खण्ड इस क्षेत्र का सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम है। इस भू-भाग पर बुन्देलखण्ड के राजाओं का आधिपत्य होने के कारण यह नाम प्रचलित रहा। इस वंश के नामकरण के सम्बन्ध में “वीर सिंह देव चरित" तथा "छत्रप्रकाश" में वर्णित कथा का संदर्भ दिया जाता है। बुन्देलखण्ड में जैन धर्म का व्यापक प्रभाव रहा है। स्वाभाविक ही धर्म की अनेक मूर्तिशिल्प गढी गयी है। यहां के कई पुरातात्विक स्थलों पर जैनधर्म से संबन्धित प्रतिमाएं सुरक्षित रखी हुई है। जो बुन्देलखण्ड के उत्तरप्रदेश में स्थित है। ये स्थान इस प्रकार हैं:-1. देवगढ़, 2. सीरोन खुर्द, 3. दूधई-चाँदपुर, 4. महोबा, 5. बानपुर। देवगढ़ का प्राचीन नाम "लुअच्छगिरि" था। जो गुर्जर प्रतिहार राजा भोजदेव के शिलालेख में मिलता है। यह उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले में 24° 15° उत्तरी अक्षांश तथा 78° 15 पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। यह स्थान ललितपुर से 33 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र बाहुबली की कई मूर्तियाँ देवगढ़ में सुरक्षित है। मूर्ति के ऊपर लता पत्र तथा बिच्छू छिपकली आदि कीड़े चढ़े हुये दिखाये गये है। यहाँ से भरत की कई मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। एक मूर्ति में नवनिधियों के साथ अंकित है।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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