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________________ अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 वे आगे लिखते हैं कि वह तप दो प्रकार का है - बाह्य और अन्तरंग । बाह्य तप छः प्रकार का है अनशन, अवमौदर्य, विविक्तशय्यासन, रसत्याग, कायक्लेश और वृत्तिसंख्यान ।” अन्तरंग तप भी छ: प्रकार का हैविनय, वैयावृत्त्य, प्रायश्चित, उत्सर्ग, स्वाध्याय और ध्यान। प्रायः अन्य सभी श्रावकाचार विषयक ग्रन्थों में भी तप को यथाशक्ति करणीय मानते हुए उसके बारह भेदों का ही विवेचन किया गया है। 38 कुन्दकुन्द श्रावकाचार में लोकपूजार्थ किये गये तप की निष्फलता का विवेचन करते हुए कहा गया है 14 'पूजालाभप्रसिद्ध्यर्थं तपस्तप्येत योऽल्पधीः । शोष एव शरीरस्य न तस्य तपसः फलम् ॥ ३९ अर्थात् जो अल्पबुद्धि पुरुष लोकपूजा, अर्थलाभ और अपनी प्रसिद्धि के लिए तप तपता है, वह अपने शरीर का ही शोषण करता है। उसे तप का यथार्थ फल नहीं मिलता है। पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका में कहा गया है कि पर्व के दिनों में यथाशक्ति अनशन आदि तप तपना चाहिए- 'पर्वस्वथ यथाशक्ति भुक्तित्यागादिकं तप: । '40 इस प्रसंग में आचार्य पद्मनन्दि ने जनगालन, रात्रिभोजनत्याग, व्रतखण्डक देश, पुरुष, धन एवं कार्य के आश्रय न लेने का विधान तथा चतुर्विध विनय के पालन का भी उपदेश दिया है।" अन्य तपों के विषय में पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। ६. दान - श्रावक का छठा आवश्यक कर्म दान है। आचार्यों ने गृहस्थों को प्रतिदिन आरंभजनित पापों के प्रक्षालन के लिए दान देने का विधान किया है। श्रावकाचारविषयक ग्रन्थों में अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत के अन्तर्गत चतुर्विध- आहार, औषध, अभय और ज्ञानदान का विधान तो किया ही गया है, किन्तु उसके विशेष महत्त्व के प्रतिपादन के लिए दान को गृहस्थ के लिए अनिवार्य आवश्यक कृत्य घोषित किया गया है। जिन्होंने षडावश्यकों का प्रतिपादन नहीं किया है, उन्होंने भी देवपूजा के साथ दान का कथन किया है।
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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