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________________ 2 अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 वश में करने वाला, कर्मों का नाशक होने से परम्परया मोक्ष का कारण कहा गया है। वे कहते हैं कि पूर्वकाल में जितने सिद्ध हुए हैं, आगामी होंगे तथा वर्तमान में होने योग्य हैं, वे सब नियम से स्वाध्याय से ही हुए हैं तथा होने वाले हैं। अतः संसार का नाश करने वाला यही स्वाध्याय मोक्ष का कारण है। भव्यात्माओं को एकान्त स्थान में बैठकर मन-वचन-काय की शुद्धिपूर्वक नित्य तथा नैमित्तिक स्वाध्याय करना चाहिए।28 कुन्दकुन्दश्रावकाचार में कहा गया है कि चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, अष्टमी के दिन तथा सूतक के समय और चन्द्र-सूर्य के ग्रहण के काल में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।" ४. संयम - आत्मनियन्त्रण का नाम संयम है। अथवा पाँच व्रतों का धारण करना, पांच समितियों को पालना, क्रोधादि चार कषायों का निग्रह, मन-वचन-काय रूप दण्डत्रय का त्याग और पञ्चेन्द्रियों के विजय को संयम कहा गया है। धवला में कहा गया है - _ 'संयमनं संयमः। अथवा व्रतसमितिकषायदण्डेन्द्रियाणां धारणानुपालननिग्रहत्यागजयाः संयमः।'३० ___ मुक्ति का साक्षात् कारण होने से षडावश्यकों में संयम का विशेष महत्व है। यशस्तिलकचम्पू में श्री सोमदेवसूरि ने संयम की परिभाषा करते हुए उक्त अभिप्राय को इस प्रकार अभिव्यक्त किया है - 'कषायेन्द्रियदण्डानां विजयो व्रतपालनम्। संयमः संयतैः प्रोक्तः श्रेयः श्रयितुमिच्छताम्॥३१ चारित्रसार में चामुण्डराय ने 'संयमः पञ्चाणुव्रतवर्तनम्' कहकर पांच अणुव्रतों के पालन को संयम कहा है। आचार्य पद्मनन्दि ने संयम नामक आवश्यक का कथन करते हुए लिखा है - 'देशव्रतानुसारेण संयमोऽपि निषेव्यते। गृहस्थैर्येन तेनैव जायते फलवद्वतम्॥ त्याज्यं मांसं च मद्यं च मधूदुम्बरपञ्चकम्। अष्टौ मूलगुणाः प्रोक्ताः गृहिणो दृष्टिपूर्वकाः॥
SR No.538068
Book TitleAnekant 2015 Book 68 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2015
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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