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________________ अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 हो। इस प्रकार परम्परा की दृष्टि से जहाँ अर्धमागधी का उत्पत्ति काल 'अवसर्पिणी काल का तीसरा आरक' प्रमाणित होता है वहीं वर्तमान के कतिपय विद्वानों के अनुसार उसका समय तीसरी-चौथी शताब्दी ई.पूर्व मान्य है। भगवान् महावीर का काल ई.पूर्व छठी सदी का है और उन्होंने अर्धमागधी भाषा में ही अपना उपदेश दिया था। अतः अर्धमागधी के उद्भव का समय कम-से-कम महावीर युग तक तो प्रमाणित हो ही जाता है। भगवान् महावीरकालीन अर्धमागधी : वर्तमान में जिस अर्धमागधी भाषा को हम जानते और समझते है। उसका सीधा सम्बन्ध भ. महावीर से है। परम्परा की दृष्टि से अर्धमागधी भाषा का प्रयोग उनसे पूर्ववर्ती २३ तीर्थकरों ने भी अपने उपदेशों के लिए किया था, और उसे भगवान् महावीर ने आगे बढ़ाया। चूँकि भगवान महावीर वैशाली के थे, और उनका विचरण भी पूर्वोत्तर भारत में ही हुआ था। अतएव उनके द्वारा प्रयुक्त अर्धमागधी भाषा का संबन्ध पूर्वोत्तर भारत से ही निश्चित होता है। किन्तु यह निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता कि उस भाषा का क्या स्वरूप रहा होगा, क्योंकि न तो उस भाषा का कोई लिखित प्रमाण है और न तीर्थकर महावीर के बाद "भाषातिशय” से युक्त कोई साधक हुआ। यह सर्व विदित है कि भगवान महावीर के उपदेशों को उस समय लिपिबद्ध नहीं किया गया था, वह मौखिक रूप से, गुरू-शिष्य परम्परा के आधार पर संकलित था जिससे उसमें विभिन्न क्षेत्रों की भाषा का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। जैन परम्परा में तीर्थकर को 'अर्थ' का उपदेशक माना गया है, अतः सम्भव है कि उत्तरकालीन साधकों ने उस भाषा के मूल-स्वरूप के रख-रखाव की अपेक्षा उसके भावार्थ पर ही अधिक ध्यान दिया हो, परिमाणतः आगमों की भाषा में भाषागत मिश्रण होता गया। साधक-गण जिस-जिस क्षेत्र में गए, वहाँ-वहाँ की भाषा का प्रभाव उनके मस्तिष्क में सुरक्षित आगमों की भाषा पर निश्चित ही पड़ता गया। यह तथ्य सर्वविदित है कि भगवान् के उपदेशों को लगभग महावीर-निर्वाण के एक हजार (९८०) वर्ष बाद लिपिबद्ध किया गया था, और इस दौरान दो-दो बार
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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