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________________ अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 यदि हड़प्पा की मूर्तियों को छोड़ दें तो महावीर से पूर्व तीर्थकर मूर्तियों के अस्तित्व का कोई भी साहित्यिक या पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। जैन ग्रन्थों में महावीर की यात्रा के सन्दर्भ में उनकी किसी जैन मन्दिर जाने या जिन-मूर्ति के पूजन का अनुल्लेख है। इसके विपरीत यक्ष आयतनों एवं यक्षचैत्यों (पूर्ण भद्र और मणिभद्र) में उनके विश्राम करने के उल्लेख प्राप्त होते फलतः प्राचीनतम् महत्वपूर्ण उल्लेख महावीर के जीवनकाल में निर्मित मूर्ति उनकी जीवन्तस्वामी के नाम से प्रसिद्ध हुई। जीवन्त स्वामी प्रतिमाओं को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय उमाकान्त प्रेमानन्द शाह को है। साहित्य परम्परा को विश्वसनीय मानते हुए शाह ने महावीर के जीवनकाल से ही जीवन्तस्वामी मूर्ति की परम्परा को स्वीकार किया हैं उन्होंने अकोटा (गुजरात) से प्राप्त जीवन्तस्वामी की दो गुप्तयुगीन कांस्य प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया है। इन प्रतिमाओं में जीवन्तस्वामी को कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा और वस्त्राभूषणों से सज्जित दर्शाया गया है। प्रथम प्रतिमा लगभग पाँचवी शती ई० की है और दूसरी लेख युक्त मूर्ति छठी शती ई० की है। दूसरी मूर्ति के लेख में 'जिवंतसामी' उत्कीर्ण है। दूसरी-पहली शती ई०पू० की जैन गुफाएँ उदयगिरि-खण्डगिरि (उड़ीसा) से प्राप्त होती है। उदयगिरि की हाथी गुफा में खारवेल का लगभग पहली शती ई०पू० का लेख उत्कीर्ण है। यह लेख अर्हतों एवं सिद्धों को नमन से प्रारम्भ होता है। लेखानुसार खारवेल ने अपनी रानी के साथ कुमारी (उदयगिरि) स्थित अर्हतों को स्मारक अवशेषों पर जैन साधुओं का नन्दराजतिवससत वर्ष पूर्व कलिंग से मगध ले गया था, उसे खारवेल पुनः वापस ले आया।३ तिवससत शब्द का अर्थ अधिकांश विद्वान ३०० वर्ष मानते हैं। इस लेख के आधार पर जिन मूर्तियों की प्राचीनता लगभग चौथी शती ई०पू० तक जाती है। दूसरी शती ई०पू० के मध्य में जैन मूर्तिशिल्प-कला को प्रथम पूर्ण अभिव्यक्ति मथुरा में मिली। शुंग युग से मध्ययुग (१०२३ई०) तक की जैन मूर्ति सम्पदा का वैविध्य भण्डार प्राप्त होता है, जिसमें जैन मूर्ति-कला के विकास की प्रारम्भिक अवस्थाएँ प्राप्त होती है। जैन परम्परा में मथुरा की प्राचीनता सुपार्श्वनाथ के समय में स्तूप का निर्मित होना।५ विविधतीर्थकल्प (१४वीं
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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