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________________ अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 दृष्टियुक्त। मिथ्यात्व के पाँच भेद बताये गये हैं- विपरीत, एकान्त, संशय, विनय और अज्ञान।मिथ्यात्वी पुरुष असत्य को सत्य, बुराई को अच्छाई तथा पाप को पुण्य मानकर चलता है - यही उसकी विपरीतता है । उसमें हठग्राहिता पाई जाती है। संशयशील वृत्ति भी मिथ्यात्व का लक्षण है। अच्छी से अच्छी बात में मिथ्यात्वी को पूर्ण विश्वास नहीं होता एवं प्रबलतम तर्क और प्रमाण उसके संशय को दूर नहीं कर पाते हैं । विनय का अर्थ है - नियम परिपालन किन्तु बिना विवेक के किसी भी प्रकार के अच्छे बुरे नियम का पालन करना ही श्रेष्ठ समझ बैठना विनय मिथ्यात्व है। तत्त्व और असत्व के सम्बन्ध में जानकारी या सूझ-बूझ के अभाव का नाम अज्ञान है। भारतीय दर्शनों की भाँति ही जैनमत में भी मन को अन्तरन्द्रिय और क्रोधादि को कर्मबन्धन में बाँधने वाला माना गया है। जैन मनोविज्ञान में भी प्रायः उन्हीं तत्त्वों को अपनाया गया है जिनकी सत्ता सांख्य दर्शन में स्वीकृत है। ** संदर्भ : १. चेतना लक्षणो जीवः । २. कुन्दकुन्दाचार्यः पञ्चास्तिकाय समयसार ३३ ३. Quoted in Indian Philosophy p. 285 Dr. Radha Krishnan. ४. उमास्वति तत्त्वार्थसूत्र, २. ९१ ५. पञ्चास्तिकाय समयसार, ३८ ६. मन एवं मनष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । ७. डॉ. राधाकृष्णनः भारतीय दर्शन, पु. २८४ 49 असिसटेंट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, जाकिर हुसैन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, -
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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