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________________ अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 सामने आती है कि लोकव्यवहारज्ञ पंडित को छोड़कर श्रद्धान, ज्ञान और चारित्र में निपुण पंडित का मरण ही सार्थक मरण है तथा इन श्रद्धान, ज्ञान और चारित्र की निपुणता में भी यद्यपि बात आत्मस्वरूप पर विश्वास, उसके विचार व उसमें आचरण को लेकर है, तथापि वहाँ प्रमुखता मोक्षोन्मुख चारित्राराधना की ही है, क्योंकि वही मोक्षोपलब्धि में साक्षात् कारण भी है। भगवती आराधना में पंडितमरण के पादोपगमन मरण, भक्तप्रतिज्ञा व इंगिनी मरण आदि तीन प्रकार बताये गए हैं तथा कहा गया है कि वह पंडितमरण शास्त्र में कहे अनुसार आचरण करने वाले साधु के होता है। सन्दर्भ: १. भगवती आराधना, १६८-१७१ २. वही-८३ ३. पुव्वं ता वण्णेसिं भत्तपइण्णं पसत्थमरणेसु। उस्सण्णं सा चेव हु सेसाणं वण्णणा पच्छा।। - भगवती आराधना, ६३ ४. भगवती आराधना की विजयोदया टीका, गाथा-२६ ५. पंडिदपंडिदमरणं पंडिदयं बालपंडिदं चेव। बालमरणं चउत्थं पंचमयं बालबालं च।। - भगवती आराधना, २६ ६. भगवती आराधना की विजयोदशा टीका गाथा-२५ ७. पायोपगमणमरणं भत्तपइण्णा य इंगिणी चेव। तिविहं पंडितमरणं साहुस्स जहुत्तचारिस्स।। - भगवती आराधना, गाथा-२८ क्रमशः अगले अंक में ... - प्रो. व अध्यक्ष, भाषा-विद्यापीठ महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रिय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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