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________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 विश्लेषण भी इसमें किया गया है। कृषि अर्थव्यवस्था की धुरी थी। कृषि पूर्णतः वैज्ञानिक ढंग से की जाती थी लेकिन किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता था, जो स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता का प्रमाण है। सिंचाई के साधन के रूप में पुष्करिणी, तालाब, सरोवर, बावड़ी आदि थे। चावल, सरसों, उड़द आदि मुख्य फसलें थी। कृषि, दूध, यातायात, चमड़ा और मांस के लिए पशु पाले जाते थे। अप्रत्यक्ष रूप में वस्त्र, धातु, बर्तन, काष्ठ, चर्म, मद्य व प्रसाधन आदि उद्योगों का उल्लेख मिलता है। लोग शिल्पादि विभिन्न कलाओं के द्वारा भी अर्थोपार्जन करते थे। तत्कालीन समृद्धि के शिखर पुरुष-श्रेणिक, मेघ, जितशत्रुराजा, धन्यसार्थवाह, नन्दमणिकार आदि आधुनिक आर्थिक जगत् के आदर्श बन सकते हैं। आधुनिक वित्त-व्यवसाय की भांति उस समय भी पूंजी के लेन-देन का व्यवसाय प्रचलन में था। देशी-व्यापार स्थलमार्ग से और विदेशी-व्यापार जलमार्ग से होता था। परिवार के विभिन्न साधन-रथ, बैलगाड़ी, हाथी, घोड़ा, नौका, पोत, जलयान आदि थे।५ माप-तौल की प्रणालियों के रूप में गणिम, धरिम, मेय और परिच्छ प्रचलन में थी। सिक्कों का चलन सीमित था।६ अधिकांश लेन-देन वस्तु-विनिमय के माध्यम से होते थे। ज्ञाताधर्मकथांग और राज्यव्यवस्था : राज्य के सप्तांग के रूप में राज्य, राष्ट्रकोश, कोठार, बल (सेना), वाहन, पुर (नगर) और अन्तःपुर का नामोल्लेख मिलता है। राजा राज्य का सर्वोपरि होता था। राजा राज्योचित-गुण संपन्न थे। उनमें क्षत्रियोचित सभी गुण विद्यमान थे। राजा वंश परम्परा से ही बनते थे। राज्याभिषेक समारोह अत्यन्त भव्यता से मनाया जाता था। सामान्यतः ज्येष्ठ पुत्र को राजा बनाया जाता था ओर कनिष्ठ पुत्र को युवराज बना दिया जाता था। यद्यपि राजव्यवस्था विकेन्द्रित नहीं थी, लेकिन राज्य का संचालन करने के लिए राजा अपने अनुचरों के रूप में अमात्य, सेनापति, श्रेष्ठी, लेखवाह, नगररक्षक, तलवर, दूत, कौटुम्बिक पुरुष, दास-दासियां व द्वारपाल आदि रखता था। राजा और राज्य का अस्तित्व सैन्य संगठन के हाथे में सुरक्षित रहता है। चतुरंगिनी सेना, सेनापति, सारथी और वीर योद्धा युद्ध में मुख्य भूमिका निभाते थे। धनुष, तलवार, भाला, मूसल आदि हथियार प्रचलन में थे। राज्य के आय-स्रोत के रूप में चुंगी, कर, जुर्माना,
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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