SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अवदान डॉ. योगेश कुमार जैन, सहायक आचार्य जैन धर्म दर्शन एवं संस्कृति विशेषकर आचार-विचार का प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए आगम ग्रन्थों का आलोड़न-विलोड़न करना अपरिहार्य है, अतएव उनका महत्व स्वतः सिद्ध है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी जैन धर्म-दर्शन का प्राचीनतम स्वरूप एवं सांस्कृतिक विरासत आगमों में ही उपलब्ध होता है। आगम शब्द की व्युत्पत्ति तथा उसका अर्थ : _ 'आड्र' उपसर्ग-पूर्वक भ्वादिगणीय ‘गम्ल-गतौ' धातु से अच् प्रत्यय करने पर अथवा इसी धातु के करण अर्थ में ‘घञ्' प्रत्यय करने पर आगम शब्द निष्पन्न होता है। प्रामाणनयतत्त्वालोक- आप्त वचन ही आगम है। अर्थ ज्ञान जिससे हो, वह भी आगम है। प्रामाणनयतत्त्वालोकालंकारकार की दृष्टि से आप्त-पुरुष की वाणी से जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह आगम है।' जहाँ तक आप्त-पुरुष की वाणी का सम्बन्ध है, तीर्थकर, गणधर, चतुर्दसपूर्वधारी, दसपूर्व-धारी तथा प्रत्येक बुद्ध की वाणी को जैन दर्शन में आगम माना है। आचार्यों ने पूर्वापर दोष रहित सम्पूर्ण पदार्थों के द्योतक आप्त वचन को बताया है। अर्हत् भगवान् अर्थ रूप में तत्त्वों और सत्य का यथार्थ निरुपण करते हैं तथा गणधर उसे शासनहित में उन्हें सूत्र रूप में गुम्फित करते हैं। इसी कारण जैन आगम तीर्थकर प्रणीत कहे जाते हैं। आप्त वचनादि से होने वाले ज्ञान को आगम कहते हैं। आगम एवं श्रुत केवली भगवान के द्वारा जो कहा गया है तथा गणधर के द्वारा जो धारण किया गया है उसे श्रुत कहते हैं। आचार्य उमास्वाति ने श्रुत के पर्यायवाची शब्द के रूप में आगम शब्द का प्रयोग किया है। उन्होंने आप्तवचन, आगम, उपदेश, ऐतिहा, आम्नाय, प्रवचन और जिनवचन को श्रुत के पर्यायवाची शब्द के रूप में स्वीकार किया है। वस्तुतः यहाँ श्रुत शब्द अत्यन्त व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अतएव आचार्य परम्परा से जो श्रुत
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy