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________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 उससे उच्च रक्तचाप, हृदय की धड़कन बढ़ना, शरीर पसीने-पसीने होना जैसे लक्षणों के साथ ही, बीटा तरंगें भी, उच्च आवृत्ति वाली गामा तरंगों में परिवर्तित होकर शरीर के प्रत्येक प्रदेश को आवेष्टित कर लेती हैं। कभी-कभी अधिक व्यग्रता की स्थिति में, बीटा-तरंगें, गामा तरंगों से भी अधिक आवृत्ति वाला फास्ट और सुपर फास्ट श्रेणी की तरंगों में भी परिवर्तित हो जाती हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हमारे शरीर में सात्विक, राजस और तामस ये तीन प्रकार के गुण होते हैं। सात्विक गुण से ज्ञान, बुद्धि, मेधा, स्मृति आदि गुणों का विकास होता है जो मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं। सात्विक गुण के सर्वथा विपरीत तामसिक गुण होता है। साधारण, सदाचारी, संसारी जीव के सात्विक और तामस मध्य का राजस गुण होता है। मांस के समतुल्य रात्रि-भोजन के दोषों के साथ ही, वैज्ञानिक विश्लेषणों में पाये गए दोष निम्नलिखित हैं:३३ (१) मांस भक्षण और इसके समतुल्य रात्रि-भोजन सात्विक गुणों का नाश करके तामसिक गुणों की वृद्धि करते हैं। (२) रोगों को रोकने में रेशा - Fibre का बड़ा महत्व है। मांसाहारी पदार्थों में फाइबर की मात्रा बिलकुल नहीं होती। अतः मांसाहार में रोग-प्रतिरोधक क्षमता शून्य होती है। (३) मांसाहार में कोलेस्ट्राल (Cholestrol) की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। (४) मांस का पाचन समय अधिक होने के कारण उसे पचाने में शक्तिशाली पाचक तत्वों की आवश्यकता होती है जिससे शरीर के पाचन-तंत्र पर अधिक दबाव पड़ता है। (५) एक खोज के अनुसार रेड मीट (Red meat) से हाइपरटेंशन (Hypertaension) और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। (६) मांस के प्रक्रम (Processing) में रसायन का उपयोग होता है जो शरीर और प्राकृतिक स्वास्थ्य के प्रतिकूल है। निष्कर्ष : We are, what we eat (हम वही होते हैं जैसा खाते हैं)। संदर्भ :
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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