SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 अल्पफल बहुविघातान्मूलमाणि श्रृडूगवेराणि।२४ नवनीत निम्बकसमं कैतकीमल्येवमव हेयत।।८५।। अर्थात् - जिसके सेवन से अपना प्रयोजनमूल फल तो अल्पसिद्ध होता है किन्तु खाने से अनंत जीवों का घात होता है ऐसे कन्दमूल, श्रृंगवेर, मक्खन, नीम के फूल, कुसुम, जिनमें अनंत जीवों का घात होता है, त्यागने योग्य ही हैं। एकमपि प्रजिघांसु निहन्त्यनन्तान्यतस्नतोवऽश्यम।५ करणीयमशेषाणां परिहरणमनन्त कायानाम्।।१६२।। भावार्थ - जिस एक को घात करने से अनंत स्थावर जीवों का घात होता है इसलिए अनन्तकाय वाली साधारण वनस्पतियों को सर्वप्रकार त्याग देना चाहिए। कंदमूल प्रायः इस दोष में आते हैं, अतः त्यागना उचित है। कन्दादिषटकं त्यागार्हमित्थन्नाद्वि भजेन्मुनिः।२६ न शक्यते विभक्तुं चेत् त्यज्यतां तर्हि भोजनम्।।४१।। अर्थ-कन्द, मूल, फल, बीज, कण और कुण्ड, ये छह त्याज्य है अतः इन्हें भोजन से अलग कर दें। यदि इन्हें भोजन से अलग करना शक्य न हो तो भोजन ही त्याग देना चाहिए। मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपञ्चकम्। अष्टौ मूलगुणानाहुगृहिणां श्रमणोत्तमः।।६६।। अर्थ- श्रमणोत्तम अर्थात् जो गणधरदेव तथा श्रुतकेवली हैं वे गृहस्थ के मद्य, मांस, मधु के त्याग सहित पांच अणुव्रतों को अष्टमूल गुण कहते हैं। जमीन के अंदर सूर्य की किरणें किसी भी समय नहीं पहुंच पाती, इसलिए कंदमूल आदि सभी तरह के जमीकंद असंख्यात सूक्ष्म जीवों से सदा आवेष्टित होकर दूषित रहते हैं। यही अभक्ष्य पदार्थ रात्रिकालीन अंधकार की तामसी प्रवृत्ति के कारण विषाद, अधर्म, अज्ञान, आलस्य और राक्षसीवृत्ति को जन्म देते हैं। बुंदेलखण्ड में चार बातों की शुद्धि को 'चौका' कहते हैं। वे हैं१. द्रव्य शुद्धि २. क्षेत्र शुद्धि, ३. काल शुद्धि, ४. भाव शुद्धि।एषणा समिति की अंगभूत आठ प्रकार की पिण्ड शुद्धि इस प्रकार है:- उदगम् शुद्धि, उत्पादन शुद्धि, आहार शुद्धि, संयोग शुद्धि, प्रमाण शुद्धि, अंगार शुद्धि, धूम शुद्धि और हेतु शुद्धि। पिण्ड का अर्थ आहार है और व्यापक अर्थ में द्रव्य।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy