SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/4 अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 25 जैन शिक्षा पद्धति में शिक्षण की सोलह विधियाँ बताई गई हैं - १. निसर्ग विधि २. अधिगम विधि ३. निक्षेप विधि ४. प्रमाण विधि ५. नय विधि ६. (क) स्वाध्याय विधि (ख) प्रश्नोत्तर विधि ७. पाठ विधि ८. श्रवण विधि ९. पद विधि १०. पदार्थ विधि ११. प्ररूपणा विधि १२. उपक्रम विधि १३. व्याख्या विधि १४. शास्त्रार्थ विधि १५. कथा, रूपक, तुलना उदाहरण विधि १६. संगोष्ठी विधि । जैन परम्परा में शिक्षण विधि का व्यवस्थित क्रम सदाकाल से चला आ रहा है। भगवान महावीर ने कहा था- जैसे पक्षी अपने शावकों को चारा देते हैं, वैसे ही शिष्यों को नित्य प्रतिदिन और प्रतिरात शिक्षा देनी चाहिए ।" १. निसर्ग विधि - निसर्ग का अर्थ- स्वभाव । स्वयंप्रज्ञ व्यक्ति को आचार्य द्वारा शिक्षा प्राप्त करने की अपेक्षा नहीं रहती । प्राप्त जीवन में वे स्वतः ही ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न विषयों को पूर्व संस्कारवश सीखते जाते हैं- तत्त्वों का सम्यक् बोध स्वतः प्राप्त करते हैं। उनका जीवन ही प्रयोगशाला होता है। यह निसर्ग विधि है। २. अधिगम विधि - अधिगम का अर्थ - पदार्थ का ज्ञान। दूसरों के उपेदशपूर्वक पदार्थों का जो ज्ञान होता है, वह अधिगमज कहलाता है। इस विधि के द्वारा प्रतिभावान तथा अल्पप्रतिभा युक्त सभी प्रकार के व्यक्ति तत्त्वज्ञान प्राप्त करते हैं । निसर्ग विधि में प्रज्ञावान व्यक्ति की प्रज्ञा का स्फुरण स्वतः होता है किन्तु अधिगम विधि में गुरु का होना अनिवार्य है। गुरु के उपदेश से जीवन और जगत् के तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करना, यही अधिगम विधि है। अधिगम विधि के दो भेद हैं - १. स्वार्थाधिगम २. परार्थाधिगम। ३. निक्षेप विधि - संकेत-काल में जिस वस्तु के बोध के लिए जो शब्द गढ़ा जाता है वह वही रहे तब कोई समस्या नहीं आती। किन्तु ऐसा होता नहीं। वह आगे चलकर अपने क्षेत्र को विशाल बना लेता है। उससे फिर उलझन पैदा होती है और वह शब्द इष्ट अर्थ की जानकारी देने की क्षमता खो बैठता है। इस समस्या का समाधान पाने के लिए निक्षेप पद्धति है। जैन ग्रन्थों में निक्षेप का सामान्य लक्षण इस प्रकार है- संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रूप वस्तु को निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है उसे निक्षेप कहते हैं। अर्थात् जो अनिर्णीत वस्तु का नामादिक द्वारा निर्णय
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy