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________________ अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 कर्मबद्ध आत्मा ही अपने शुभ-अशुभ या पुण्य-पाप रूप परिणामों का कर्ता है। सांख्य दार्शनिक जीव को सर्वथा निष्क्रिय कूटस्थ शुद्ध द्रव्य मानते हैं। वह वास्तव में बन्धन में भी नहीं पड़ता है। वे कहते हैं - तस्मान्न बध्यतेऽद्धा न मुच्यते नापि संसरति कश्चित्। संसरति बध्यते मुच्यते च नानाश्रया प्रकृतिः॥१ अर्थात् अपरिणामी होने से कोई भी पुरुष (आत्मा) न बन्धन को प्राप्त होता है, न मुक्त होता है और न संसरण करता है। प्रकृति ही संसरण करती है, बन्धन को प्राप्त होती है और मुक्त होती है। जैन दार्शनिकों की मान्यता है कि आत्मा निश्चय नय के अनुसार अपने भावों का और व्यवहार नय के अनुसार कर्मों का कर्ता है। यदि आत्मा को कर्मों का कर्ता नहीं माना जायेगा तो फिर वह बन्धन में नहीं पडेगा और बन्धन नहीं है तो मोक्ष कैसा? क्योंकि बन्धन के नाश का नाम ही मोक्ष है। इसी कारण आत्मानुशासन में आत्मा को कर्ता कहा गया है। ५. भोक्ता- आत्मा को क्षणिक मानने के कारण बौद्धों में भोक्तृत्व संगत नहीं बन पाता है। क्योंकि जब क्रिया की गई तबका आत्मा अग्रिम क्षण में है ही नहीं। अतः उसमें कर्तापने एवं भोक्तापने की एकता संभव नही है। वह व्यवहार नय के अनुसार अपने कर्मफल रूप सुख-दुख आदि का तथा निश्चय नय के अनुसार चैतन्यरूप आनन्द का भोक्ता है। यदि आत्मा को अपने कर्मों का भोक्ता नहीं माना जायेगा तो पुण्य-पाप एवं पुनर्जन्म आदि की व्यवस्था ही नहीं बन सकेगी। अतः आत्मविषयक बौद्ध मान्यता के निरसन के लिए आत्मा को भोक्ता कहा गया है। ६. सुखी- अनेक विचारक सुख को जीव का गुण नहीं मानते हैं। उनका कहना है कर्मफलमुक्त जीव में सुखादि विद्यमान नहीं रहते हैं। बौद्धों का निर्वाण दीपक के बुझने के समान अनुभूतिहीन दशा है। नैयायिक आदि में भी ऐसी मान्यता दृष्टिगत होती है। जबकि जैन दर्शन के अनुसार सुख आत्मा का विशेष गुण है। आलापपद्धति में कहा गया है कि जीव में ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, चेतनत्व और अमूर्तत्व- ये छह गुण हैं। पञ्चाध्यायीकार चारित्र, दर्शन, सुख, ज्ञान एवं वीर्य इन पाँच को आत्मा का विशेष गुण मानते हैं। सुख रूप विशेष गुणता के कारण श्रीगुणभद्राचार्य ने आत्मा को सुखी कहा है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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