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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 पाठकों के पत्र. - प्रसन्नता है कि आपने अनेकान्त' में पाठकों के पत्र नाम से एक नया स्तम्भ शुरू किया है। इससे अनेकान्त के पठन पाठन में पाठकों की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है। किसी भी पत्रिका में प्रकाशित सामग्री की सार्थकता इसी में है कि वह पाठकों तक पहुँचे, उनके भीतर प्रतिक्रिया जगाए, उन्हें अपनी शंकाओं के समाधान का और खुली लेकिन मर्यादित बहस का अवसर दे। इसके लिए एक स्थूल उपाय और किया जा सकता है कि आलेख के नीचे उसके लेखक का पता भले ही न दें उसका फोन नं०, ई-मेल जरूर दें। एकल व्यक्ति चित्र के नीचे व्यक्ति का नाम भी दिया रहे तो अच्छा है। रचनाओं में पाठक की हिस्सेदारी के अभाव में उसमें पढ़ने के प्रति उदासीनता पनपने लगती है। आज स्थिति यह है कि देश में जैन पुस्तकों और जैन पत्रिकाओं पर जैन परिवारों का औसत खर्च २५/-रुक भी नहीं है। आगे आने वाली जैन पीढ़ी का अगर जैनधर्म से जुड़ाव बनाए रखना है तो इस स्थिति को बदलना होगा। अप्रैल-जून ०१४ के अंक में वर्तमान में श्रमणचर्या की विसंगतियाँ एवं निदान एक सुविचारित आलेख है। लेकिन उसे समाप्त करते करते लेखक का कथन है कि 'तथापि श्रमणों की प्रवृत्ति मूलाचार, भगवती आराधना, अष्ट पाहुड के स्वाध्याय के प्रति जागृत हो-ऐसा श्रावकों के द्वारा यथासंभव प्रयास होना चाहिए।' इस कथन ने जैसे बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया है। क्या ऐसी प्रवृत्ति श्रावकों में भी जागृत नहीं होनी चाहिए? और उनमें इसे जागृत करने का प्रयास श्रमणों को नहीं करना चाहिए? कथन को आधे रास्ते में ही छोड़ देने की ध्वनि अगर यह है कि उक्त ग्रंथ श्रावकों के लिए नहीं है तो यह तो और भी दुखदायी है। खुद पढ़ने वाला श्रावक ही तो श्रमण में पढ़ने की प्रवृत्ति जगा सकता है। पिछले कई अंकों में आपने लगातार महत्त्वपूर्ण आलेखों का प्रकाशन किया है। सामग्री का चयन स्तरीय है। प्रस्तुतिकरण, मुद्रण आदि में भी असाधारण और प्रशंसनीय सुधार आपने किया है। यह भी कम अच्छी बात नहीं है कि अनेकान्त ही एक ऐसी जैन पत्रिका है जिसमें प्रूफ की अशुद्धियाँ प्रायः नहीं होती। बधाई। -डॉ जयकुमार जलज प्राचार्य (से.नि.) ३०, इन्दिरा नगर, रतलाम-४५७००१ फोन-9407108729
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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