SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 अष्टमांगलिक प्रतीक उत्कीर्ण हैं जिनमें त्रिरत्न भी सम्मिलित है। मथुरा के कुछ आयागपट्टों पर स्तूप का अंकन पाया गया है जिसके तोरण के स्तम्भ शीर्ष त्रिरत्न से सजाए गए हैं।३९ स्वस्तिक मानव जीवन का एक अद्भुत प्रतीक है। जैनधर्म में स्वस्तिक भी एक लोकप्रिय मांगलिक प्रतीक है। यह सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ का लांछन भी हैं। जैन धर्मानुयायी स्वस्तिक को 'सिद्धम्' के समकक्ष पूज्य मानते हैं। स्वस्तिक का महत्व वैदिक, जैन एवं बौद्ध तीनों धर्मों में है। स्वस्तिक का अंकन तीर्थकर एवं भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं के तलुए एवं हथेलियों पर किया गया है। पवित्रता के रूप में स्वस्तिक का महत्व व्यापक है। मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त जैन आयागपट्ट पर स्वस्तिक सहित अन्य मंगल प्रतीकों का सर्वोत्कृष्ट अंकन है। एक आयागपट्ट के केन्द्र में एक छोटा वृत्त है, जिसमें जैन तीर्थकर प्रतिमा अंकित है। चार रखाऐं एक बड़े आकार के स्वस्तिक का निर्माण करती हैं। एक अन्य आयागपट्ट के केन्द्र में एक लघु वृत्त है, जिसमें जैन तीर्थकर प्रतिमा है। उसके चारों ओर एक-एक त्रिरत्न है। इसके एक बड़े वृत्त में गोलाई से लहराती हुई चार रेखाएं एक बड़े आकार के स्वस्तिक का निर्माण करती हैं, इसीलिए इसे स्वस्तिक पट्ट भी कहते हैं। इन रेखाओं के अंतिम सिरे मछली की आकृति में दो भागों में विभाजित है। उनके बीच से कमल कलिकाएं निःसृत हो रहीं हैं। इन चौड़ी रेखाओं के मध्य बिन्दुओं का संयोजन कर अंलकरण किया गया है। इसके चारों भुजाओं के रिक्त स्थानों की आपूर्ति पुनः स्वास्तिक, मत्स्ययुगल, श्रीवत्स एवं वर्धमानक्य अभिप्रायों से की गई है। दाहिने किनारे की ओर वामावर्त स्वस्तिक दर्शनीय है। उसकी एक भुजा खण्डित है। मथुरा से एक चक्रपट्ट प्राप्त हुआ है उसके मध्य सोलह आरों वाला चक्र अंकित है। इस आयागपट्ट का ऊपरी बायां भाग खण्डित है। चारों ओर किनारे की गोट अनेक अलंकरण तथा प्रतीक हैं। ऊपर की गोह में दाहिने किनारे की ओर पत्तियों एवं पंखुड़ियों के माध्यम से बना वामावर्त स्वस्तिक है। नीचे की गोट में बायें किनाने की ओर चौड़ी दोहरी रेखाओं से निर्मित वामावर्त स्वस्तिक कलात्मक रूप में दिखाया गया है। उसके अंतिम छोर मछली की आकृति में समाप्त होते हैं। इनके बीच भी अंलकरण है।"
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy