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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 अशोक वृक्ष के नीचे बैठी है उसे किसी ने कुल्हाड़ी से कौल दिया है।और उसके स्थान पर एक छोटा सा अशोक का वृक्ष उत्पन्न हो गया है। प्रातः काल होते ही रानी ने राजा से स्वप्नों को फल पूछा। राजा ने कहा कि तू मेरे मरने के बाद तू शीघ्र ही ऐसा पुत्र प्राप्त करेगी जो आठ लाभों को पाकर पृथ्वी का भोक्ता बनेगा। स्वप्नों का फल जानकर रानी का चित्त हर्ष से भर गया। तभी उसी समय राजपुर नगर में गन्धोत्कट नामक सेठ द्वारा शीलगुप्त मुनि से पूछने पर कि क्या उसे पुत्र की प्राप्ति होगी तभी मुनि ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम एक दीर्घायु पुत्र को प्राप्त करोगे पूछने पर कि किस तरह तब मुनिराज ने कहा कि तुम्हारे एक मृत पुत्र का जन्म होने पर जब तुम उसे छोडने जंगल में जाओगे तो वहाँ पर किसी पुण्यात्मा पुत्र को प्राप्त करोगे। वह पुत्र ही समस्त पृथ्वी का उपभोक्ता होकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करेगा। इधर राजा सत्यंधर के मंत्री काष्ठांगारिक मंत्री ने राजा को मारने की योजना बनाई और कुछ राजाओं को अपने साथ लेकर युद्ध किया तथा अपने पुत्र की सहायता से उसने राजा सत्यंधर को मारकर स्वयं राजा बन बैठा। इधर विजया रानी शोक में डूबी हुई गरूण यंत्र द्वारा श्मशान में पहुँचकर एक बालक को जन्म दिया। इधर गन्धोत्कट सेठ अपने मृत पुत्र को जंगल में छोड़कर और दीर्घायु पुत्र की खोज करने लगा तभी उसे छोटे बालक के रोने की आवाज सुनाई दी। सेठ जीव-जीव कहते हुए उसी दिशा की ओर बढ़ गया विजया रानी ने सेठ को आवाज के माध्यम से पहचान लिया और उसे अपना परिचय देते हुए कहा कि तू मेरे इस पुत्र का इस तरह से पालन करना जिससे किसी को पता न चल सके। मैं ऐसा ही करूँगा कहकर सेठ पुत्र को घर ले आया और अपनी पत्नी को डाँटते हुए कहा कि तूने एक जीवित पुत्र को जन्म दिया है न कि मरे हुए पुत्र को सेठ की पत्नी सुनन्दा उस पुत्र को प्राप्त कर अत्यन्त आनंदित हुई और उसका जन्म संस्कार कर उसका नाम 'जीवक' अथवा जीवन्धर रखा। इस प्रकार धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होते जीवन्धर कुमार ने अपने भाईयों के साथ धृतषेण के पिता तपस्वी के मार्गदर्शन में सभी विद्याओं को सीख लिया। तभी कालकूट नामक भील से काष्ठांगारिक की गायों को छुडाकर लाने वाले जीवन्धर ने काष्ठांगारिक की पुत्र से अपने छोटे भाई नन्दाढ्य का विवाह करवाया।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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