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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 अर्थात् कामपीडित मनुष्य के सभी गुण नष्ट हो जाते हैं। उसकी विद्वता, पाण्डित्य, श्रेष्ठ जाति व महानता गौरव आदि मलिन हो जाते हैं। कामासक्त अपने किस गुण की रक्षा करता है। किसी की नहीं वह तो गुणों की ओर से पूर्ण अंधा हो जाता है। - (नीतिवाक्यमतम् श्लोक ११) अवश्यं मातारश्चिरतमुषित्वापि विषया वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून ब्रजन्तः स्वातन्त्रयाद्तुल परितापाय मनसः स्वयं व्यक्ता ह्येते शमसुखमनन्तं विद्धाति।। वैराग्यशतक श्लोक १२ विषयाशाभिभूतस्य विक्रियन्तेक्षदन्तिनः पुनस्तः एव दृश्यन्ते क्रोधादिगहनं श्रिताः जो पुरूष इन्द्रियों के विषयों की आशा से पीडित हैं उनके इन्द्रिय रूपी हस्ती विकारता को प्राप्त हो जाते हैं। फिर वे ही पुरूष क्रोधादिक कषायों की गहनता के आश्रित हुए देखे जाते हैं । (ज्ञानार्णव) ज्ह मज्जं पिवमाणो अददिभावेण मज्जतिद णा पुरिसो दव्वुवभोगे अरदो णाणी वि ण वज्झदि तहेव (गाथा- १९६) ज्ञान और वीतरागता का ऐसा अद्भुत बल है कि इन्द्रियों से विषयों का सेवन करने पर भी उनका सेवन करने वाला नहीं कहा जाता है। क्योंकि विषय सेवन का निजफल संसार व संसार भ्रमण है। लेकिन ज्ञानी वैरागी के मिथ्यात्व का अभाव होने से संसार का भ्रमण रूप फल नहीं होता है। तीन पुरूषार्थों के सेवन की विधि में आचार्य वादीभसिंहसूरी ने अन्य आचार्यों की भाँति ही विवेचन किया है। एवं उन्होंने त्रिवर्ग धर्म, अर्थ और काम के सम्बन्ध में इस प्रकार कहा है परस्पराविरोधेन त्रिवर्गो यदि सेव्यते अनर्गलमतः सौख्यमपवर्गोप्यनुक्रमात् यदि धर्म, अर्थ, काम ये तीनों पुरूषार्थ परस्पर की बाधा रहित सेवन किये जाए तो इससे उन्हें बिना रूकावट स्वर्ग मोक्ष की लक्ष्मी प्राप्त होती है। अर्थात् स्वर्ग तो मिलता ही है क्रमशः मोक्ष भी प्राप्त होता है। नारद मुनि के अनुसार :
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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