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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 प्रमाण के द्वारा सम्यक प्रकार से ग्रहण की गई वस्तु के एक धर्म या अंग की अपेक्षा दृष्टि को ग्रहण करने वाले ज्ञान को नय कहते हैं। अनेकान्तक वस्तु में अविरोध पूर्वक हेतु की मुख्यता से साध्यविशेष की यथार्थता को प्राप्त कराने में समर्थ प्रयोग को नय कहते हैं। आचार्य माइल्लध्वल ने नयों के विषय में कहा है कि यद्यपि आत्मा स्वयं पक्षातीत है, तथापि वह नयज्ञान के बिना पर्याय में नयपक्षातीत होने में समर्थ नही हैं अर्थात् विकल्पात्मक नयज्ञान के बिना निर्विकल्पात्मक आत्मानुभूति संभव नही है। अनादिकालीन कर्मवश यह असत् कल्पनाओं में उलझा हुआ है। अतः कल्पना रूप अर्थात सम्यक् विकल्पात्मक नयों का स्वरूप कहते हैं । यदि लीलामात्र से अज्ञानरूपी समुद्र को पार करने की इच्छा है तो दुर्नय रूपी अन्धकार के लिए सूर्य के समान नय है, जो अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करता है। जैसे-नमक सब व्यंजनों को शुद्ध कर देता है अर्थात् सुस्वादु बना देता है, वैसे ही समस्त शास्त्रों की शुद्धि के कर्ता को नय कहा है। नयों के अनेक भेद हैं। आचार्य अमृतचन्द्र का कहना है कि सम्यग्दर्शन का सहभावी होने पर भी सम्यग्ज्ञान का जुदा आराधन करना अर्थात् सम्यग्दर्शन से भिन्न प्राप्ति करना इष्ट है, क्योंकि सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान में लक्षण के भेद से नानापन अर्थात् भेद घटित होता है। जिस समय आत्मा में सम्यग्दर्शन प्रकट होता है, उसी समय उसके साथ मिथ्याज्ञान की निवृत्ति होकर सम्यग्दर्शन प्रकट होता है। साथ-साथ होने पर भी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के पीछे सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति के लिए उपदेश दिया गया है। यहाँ पर यह शंका होती है कि दोनों साथ ही प्रकट होते हैं तो सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए ही उपदेश देना ठीक है, सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति के लिए क्यों पृथक उपदेश दिया गया है? इसका उत्तर यह है कि यद्यपि साथ-साथ दोनों प्रकट होते हैं, फिर भी दोनों का लक्षण जुदा है, दोनों की संख्या जुदी है, दोनों के आवरण करने वाले कर्म जुदे हैं, दोनों का क्षयोपशम जुदा है, दोनों के कार्य जुदे हैं, दोनों के स्वरूप जुदे हैं, इसलिए उनका भिन्न-भिन्न विधन बतलाया गया है। सम्यग्दर्शन का लक्षण तत्त्वार्थ श्रद्धान है, सम्यग्ज्ञान का लक्षण यथार्थ जानना है। आचार्य समन्तभद्र का कहना है
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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