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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 जैनदर्शन में द्रव्य-गुण-पर्याय • डॉ. श्रेयांस कुमार जैन भारतीय दर्शनों में जैनदर्शन का अप्रतिम माहात्म्य है। जैनदर्शन में वस्तु व्यवस्था का विशेष स्थान है। इसका वर्णन सत द्रव्य, गुण और पर्याय के रूप में जैनधर्म/ दर्शन में किया गया है। संसार की प्रत्येक वस्तु सत् है। सत् को ही सत्ता अथवा अस्तित्व माना है। जो उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य से युक्त हो, वह सत् है। सत्/सत्ता अपने उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य स्वभाव के द्वारा नाना पदार्थों में व्याप्त होकर रहती है इसलिए नाना रूप है। संसार में कोई भी वस्तु या पदार्थ नहीं है जिसकी सत्ता न हो या जो सत् स्वरूप न हो। सत् / सत्ता की विशेषता का प्रतिपादन करते हुए आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा है- सत्ता सब पदार्थों में रहती है। समस्त पदार्थों के समस्त रूपों में रहती है, समस्त पदार्थों की अनन्त पर्यायों में रहती है, उत्पाद-व्यय ध्रौव्यात्मक है, एक है और सप्रतिपक्षा है। द्रव्य तो त्रिकाली स्थायी होता है, यह पर्याय की तरह उत्पन्न नष्ट नहीं होता। जैसे द्रव्य स्वभाव से ही सिद्ध है, उसी प्रकार वह सत् भी स्वभाव से ही सिद्ध है क्योंकि वह सत्तात्मक अपने स्वभाव से बना हुआ है। द्रव्य स्वभाव में स्थिर रहता है इसलिए सत् है। द्रव्य का स्वभाव उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की एकता रूप परिणाम। तीनों में अविना भाव भी है। ये उत्पाद-व्यय ध्रौव्य वास्तविकता से तो पर्याय में होते हैं किन्तु पर्याय द्रव्य में स्थित हैं। इसलिए ये सब द्रव्य के ही कहे जाते हैं। पदार्थ की सत्ता वस्तु व्यवस्था को बताने वाली है। जैनदर्शन में वस्तु का स्वातन्त्र्य और उसकी व्यवस्था का विस्तृत वर्णन है। वस्तु द्रव्य गुण पर्यायात्मक है। अतः द्रव्य गुण पर्याय का विवेचन जैनाचार्यों ने विस्तार के साथ किया है, जितनी सूक्ष्म विवेचना जैनदर्शन में द्रव्य, गुण, पर्याय की गई है अन्यत्र देखने को नहीं मिलती है। प्रकृत में इन्हीं का जैनदर्शनानुसार संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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