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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 ८. पाण्डुकशिला का निर्माण सुमेरुपर्वत के अनुरूप न होना। ९. दीक्षाकल्याणक की क्रियाएँ पर्दा लगाकर न करना। १०. पंचकल्याणक ६ दिन में करने का विधान है, किन्तु ५, ४ और ३ दिन में करना। ११. साधुओं का रात तक मंच पर रहकर संचालन करना या देर रात तक मंच पर बैठकर कार्यक्रम देखना। १२. फण सहित प्रतिमा को विधिनायक बनाकर गर्भ एवं जन्मकल्याणक कराना। १३. इन्द्रसभा में इन्द्रों का मजाक बनाना, उनसे आवश्यक वार्ता कराना, प्रश्नोत्तर के समय चंवर लेकर नृत्य करना। १४. इन्द्र सभा आदि का वर्णन प्रतिष्ठा ग्रन्थों में नहीं मिलता है। १५. प्रतिष्ठित प्रतिमा पर तेल, काजल, घी, गरी एवं अन्य वस्तुओं का लेप करना। मूहूर्त सम्बन्धी विसंगतियाँ : आचार्यों ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा शुभमुहूर्त में ही कराने का निर्देश किया है। किन्तु वर्तमान में धनु के सूर्य पौष में, मीन के सूर्य चैत्र में, अधिकमास, रिक्तातिथि, मंगलवार जो प्रतिष्ठा में निषिद्ध हैं, ऐसे समय में भी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करना। मंच पर अन्य कार्यों की अधिकता से क्रियाओं के समय की शुद्ध लग्न का उल्लंघन करना। जिससे प्रतिमाओं में प्रभावना, अतिशयता प्रगट नहीं हो रही है। पात्र चयन सम्बन्धी विसंगतियाँ : १- चौबीस तीर्थकरों के पंचकल्याणक एक साथ करना। २- चौबीस सौधर्मइन्द्र/ माता पिता/ कुबेर आदि बनाना। अनेक यज्ञनायक बनाना। ३- अयोग्य पात्र को भी पात्रता प्रदान करना। ४- छोटे बच्चे को पालना में झुलाना। ५- तीर्थकर की बुआ बनाना। ६- पात्रों का चयन योग्यता के आधार पर न होकर धन के आधार पर करना।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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