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________________ 16 हैं - अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 ‘वक्तर्याप्ते यद्धेतोः साध्यं तद्धेतुसाधितम् । आप्ते वक्तरि तद्वाक्यात् साध्यमागमसाधितम्॥११ जब वक्ता अविसंवादक नहीं होता तब अनाप्त कहलाता है। शास्त्रकार यहाँ कह रहे हैं कि जब वक्ता अनाप्त पुरुष होता है तो जो साध्य हेतु से सिद्ध की जाती है तो उसे हेतुसाधित कहते हैं। तथा जब वक्ता आप्त यानि अविसंवादक होता है तो आप्त वक्ता के वाक्य से जो साध्य सिद्ध होती है उसे आगमसाधित कहते हैं। सप्तमपरिच्छेद : इस परिच्छेद में ९ कारिकाओं से सर्वथा अन्तरकार्थ या बहिरङ्गार्थ की सत्ता मानने वाले ज्ञानाद्वैतवादियों विज्ञानाद्वैतवादियों के मतों की समीक्षा करके अनेकान्त रूप प्रमेय की सिद्धि की है। अन्तरङ्गार्थतैकान्तपक्ष में यदि अन्तरङ्ग अर्थ की ही सत्ता स्वीकार करेंगे तो बुद्धि अर्थात् अनुमान ज्ञान और वाक्य अर्थात् आगम सब के सब मिथ्या हो जायेंगे। अन्तरङ्गार्थतैकान्त में ज्ञान में भासित होने से ज्ञानरूप अन्तरङ्गार्थ ही सत्य है। बहिरवस्थित जड़ पदार्थ असत्य है। जो स्वयं प्रतिभासित नहीं होता वह असत्य होता है। अन्तरङ्गार्थतैकान्तवादियों का यह अभिमत युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि अन्तरङ्गार्थ मात्र को सत्य मानने पर बुद्धि (अनुमान) और वाक्य (आगम) मिथ्या हो जायेंगे। मिथ्या होने से अनुमान और आगम प्रमाणाभास प्रमाण के बिना नहीं माना जा सकता। ज्ञानाद्वैतवादी जब प्रमाण की सत्ता ही स्वीकार नहीं करता है तो वह स्वपक्ष सिद्धि प्रमाण से और परपक्ष दूषण प्रमाणाभास से कैसे कर सकेगा। नहीं कर सकेगा। यह फलित हो जाता है, जिसे आचार्य समन्तभद्र ने इस कारिका में स्पष्ट किया है - 'अन्तरङ्गार्थतैकान्ते बुद्धिवाक्यं मृषाऽखिलम् । प्रमाणाभासमेवातस्तत्प्रामणादृते कथम् ।।६२ तदनन्तर बहिरङ्गार्थतैकान्तपक्ष को रेखांकित करते हुये कहा गया है। कि प्रत्यक्ष अनुमान स्वप्न आदि ज्ञानों में बहिरर्थ का ही निर्भासन-अवबोधन साक्षात् या परम्परा से होता है अतः वही सत्य है । यही बहिरंङ्गार्थतैकान्तवाद
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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