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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 लगता है। यदि प्रत्येक आश्रय में वे पूरे के पूरे रहते हैं तो सामान्य और समवाय को अनेक मानना होगा। सत्ता और समवाय सर्वत्र होते हैं उनका कहीं भी विच्छेद नहीं होता है, यह मानना भी ठीक नहीं है क्योंकि प्रागभाव आदि अभावों मं सत्ता और समवाय कैसे रहेंगे? यदि रहेंगे तो उनको सत्ता और समवाय के सद्भाव से अभाव कहना संभव नहीं रहेगा। सत्ता सामान्य और समवाय को नित्य व्यक्तियों (पदार्थो) में जैसा मानते हैं वैसा अनित्य व्यक्तियों में नहीं माना जा सकता है, यह फलित हो जाता है। अतः सामान्य और समवाय की काल्पनिक अवधारणा को ठीक नहीं माना जा सकता है। तथा सामान्य और समवाय में परस्पर किसी भी प्रकार सम्बन्ध नहीं है। सामान्य और समवाय के साथ अर्थ भी सम्बद्ध नहीं है। अतएव वैशेषिकोक्त तीनों सामान्य, समवाय और अर्थ खपुष्प के समान ही माने जा सकते हैं। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं। सामान्य और समवाय का सम्बन्ध इसलिये संभव नहीं है क्योंकि उनका सम्बन्ध कराने वाला कोई सम्बन्ध है ही नहीं। संयोग सम्बन्ध हो नहीं सकता। क्योंकि वह द्रव्यों में होता है। समवाय में समवाय रहता नहीं है। अतः सामान्य और समवाय में परस्पर समवाय रह नहीं पायेगा। तथा जब सामान्य और समवाय परस्पर असम्बद्ध हैं तो उनके साथ अर्थ का सम्बन्ध हो सकना कैसे संभव है? अर्थ में सत्ता का समवाय सिद्ध न होने से अर्थ का असत्त्व स्वतः सिद्ध माना जा सकता है। सत्ता में सामान्य और समवाय जब परस्पर में सम्बद्ध नहीं हो सकते हैं तो असत् क्यों न हों? इस प्रकार परस्पर में असम्बद्ध तीनों अवस्तु सिद्ध हो जाते हैं। परमाणुओं को सर्वथा नित्य मानकर जो लोग कहते हैं कि परमाणुओं का संयोग होने पर भी उनमें परिवर्तन नहीं होता है वे विभाग अवस्था में जिस प्रकार पृथक् रहते हैं वैसे ही संयोग अवस्था में भी पृथक्-पृथक् ही रहते हैं। उनमें अवस्थान्तर परिणमन होने पर भी परिवर्तन नहीं होता है। यह अनन्यतैकान्तवाद है। समन्तभद्र इसे सही नहीं मानते हैं तभी तो कह रहे हैं “अनन्यतैकान्तेऽणूनां संघातेऽपि विभागवत्। असंहतत्वं स्याद्भूतचतुष्कं भ्रान्तिरेव सा।। कार्यभ्रान्तेरणुभ्रान्तिः कार्यलिंङ्ग हि कारणम्। उभयाभावतस्तस्थं गुणजातीतरच्च न।।"५५
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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