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________________ अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 रागभाव मन्द होता है और वह आत्मचिन्तन की ओर प्रवृत्त होता है। यह धर्मध्यान आत्मविकास में विशेष सहयोगी होता है। ज्ञानार्णव में सर्वत्र भव्य को धर्मध्यान करने की प्रेरणा दी गई है अतीन्द्रिय सुख के अभिलाषी चतुर गणधरादि प्रथमतः रागादि रूप तीव्र रोग समूह से संयुक्त और सन्देह से चञ्चल होकर समस्त इन्द्रियों के विषयरूप वन में मुग्ध हुए मन को स्थिर करके तत्पश्चात् सांसारिक दुःखों की परम्परा को नष्ट करने वाले एवं मुक्ति की क्रीड़ा के स्थान भूत धर्मध्यान को कहा गया है। अभिप्राय यह है कि अन्तःकरण से रागद्वेषादि को दूर करके ही धर्मध्यान में प्रवृत्त होना चाहिए तब ही उसके आश्रय से दुःखों की परम्परा नष्ट की जा सकती है अन्यथा नहीं। हे भव्य ! तू प्रथमतः आत्मारूप उपादेय पदार्थ का आश्रय लेकर मोह रूप वन को छोड़, विवेक को मित्र बना। वैराग्य का आराधन कर और शरीर व आत्मा की भिन्नता का बार-बार चिन्तन कर। इस प्रकार से अन्त में तू धर्मध्यान रूप अमत समुद्र के मध्य में स्नान करके अनन्त सुख रूप स्वभाव से संयुक्त मुक्ति के उत्कृष्ट सुखरूप कमल का दर्शन कर सकता है।" धर्मध्यान के ध्याता के लक्षण : ज्ञानार्णव में - विषय लम्पटता का न होना, शरीर का निरोग होना, चित्त का प्रसन्न होना, आगम उपदेश और जिनाज्ञा का अनुसरण करने वाला विनयी, दानी, धर्म से प्रेम करने वाला, सदाचारी होना धर्मध्यान के ध्याता के लक्षण कहे गये हैं। अन्य धवल, आदिपुराण, मूलाचार प्रदीप आदि ग्रन्थों में इन्हीं का अनुसरण किया गया है। भगवती आराधना में आर्जव लघुता, मार्दव और उपदेश ये चार प्रकार के लक्षण कहे हैं। धर्मध्यान के भेद : आज्ञाविचय धर्मध्यान, अपायविचय धर्मध्यान, विपाकविचय धर्मध्यान और संस्थान विचय धर्म ध्यान ये चार भेद धर्मध्यान के कहे गये हैं। नय की दृष्टि से धर्मध्यान को निरालम्ब और सालम्बन। सालम्बन अर्थात् जिसमें किसी वस्तु का आश्रय लिया जाता है। निरालम्बन ये आत्मा में लीनता होती है। सालम्बन ध्यान भेदात्मक होता है और निरालम्बन ध्यान में अभेदात्मकता मानी गई है। कई ग्रन्थों में धर्मध्यान के १० भेद कहे हैं। हरिवंशपुराण में प्रतिपादित धर्मध्यान के (१) अपाय विचय (२) उपाय विचय (३) जीव विचय
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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