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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 91 वीर सेवा मन्दिर में आयोजित आचार्य पं. जुगलकिशोर 'मुख्तार' स्मृति व्याख्यानमाला 'वीर सेवा मंदिर' दरियागंज, नई दिल्ली, देश का एक प्रमुख जैनदर्शन शोध संस्थान है, जिसकी स्थापना आ. जुगलकिशोर 'मुख्तार' ने सन् १९२९ में की थी।आपकी पुण्य तिथि २२ दिसम्बर को राष्ट्रीय व्याख्यानमाला “आचार्य समन्तभद्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' विषय पर संस्थान के सभागार में आयोजित की गई। यावत् जीवन मुख्तार साहब ने आचार्य समन्तभद्र स्वामी पर शोधकार्य व साहित्य-सृजन किया। सभी आमंत्रित विद्वानों ने एकमत से यह स्वीकार किया कि आचार्य समन्तभद्र स्वामी का कार्यकाल ईसा की दूसरी शताब्दी ही रहा है। कतिपय विद्वान् उन्हें गलती से पाँचवी शताब्दी का मानते हैं, क्योंकि उन्होंने सामन्तभद्र सूरि जो ५वीं सदी में हुए, उनको ही आचार्य समन्तभद्र स्वामी मान लिया है जो बिल्कुल ही ठीक नहीं है। समारोह की अध्यक्षता देश के ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ विद्वान् प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी जैन फिरोजाबाद ने की। व्याख्यानमाला का शुभारम्भ प्रो. श्रीयांसकुमार सिंघई, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, जयपुर ने आचार्य समन्तभद्र की आप्तमीमांसा का विंहगम परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि आप्त की पूज्यता, उनके बाह्यकारणों से नहीं है। ‘भवेत्' जो भव का नाश करने वाला होता है, वस्तुतः वह सर्वज्ञ ही महानता को प्राप्त है। “आचार्य समन्तभद्र का सर्वोदय तीर्थ' पर व्याख्यान देते हुए डॉ. सुशील कुमार जैन, मैनपुरी ने कहा कि सर्वोदय तीर्थ सर्वप्रथम भगवान् महावीर कृत है। मुख्य अतिथि प्रो. वृषभप्रसाद जी जैन, लखनऊ ने दोनों विद्वान्-वक्ताओं के व्याख्यानों की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि आप्त पर प्रारम्भ हुई चर्चा कहाँ ले जाती है? उपास्य मात्र होने से कोई पूज्य नहीं हो सकता। आचार्य समन्तभद्र ने शैव आदि अनेक वेष धारण कर भावैकान्त व अभावैकान्त आदि का स्वरूप समझाकर 'आर्हत् मत' की स्थापना की। उन्होंने चतुर्विशति स्तवन के माध्यम से दर्शन की गुत्थियों को समझाने का
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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