SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 85 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 वाला है और किसी मिथ्यावाद से उसका खण्डन नहीं हो सकता, अतः आपका यह तीर्थ सर्वोदय तीर्थ कहलाता है। इस कारिका में सर्वान्तवत, सर्वान्त शून्य मिथ्यात्व, सर्वपदामन्तकर विशेषणों के प्रयोग से सर्वोदय शासन तीर्थ को बताया गया है। यह आचार्य समन्तभद्र ही थे जिन्होंने सर्वोदय तीर्थ की भावना अनुसार चाण्डाल को भी महत्व दिया। सम्यग्दर्शनसम्पन्नपि मातड.गदेहजम् देवा देवं विदुर्भस्मगूढाड.गारान्तरौजसम्।।२८ र० श्रा० गणधरादिदेव मातंग देहज चाण्डाल कुल में उत्पन्न हुये भी सम्यग्दर्शन से युक्त जीव को भस्म से आच्छादित अंगार के भीतरी भाग के समान तेज से युक्त जानते हैं। इससे अगली २९वीं कारिका में - श्वापिदेवोऽपि देवः श्वाः जायते धर्मकिल्विषात्।।२९र.श्रा. यदि कुत्ता भी इस धर्मतीर्थ सर्वोदय तीर्थ का पालन करता है तो देव हो जाता है, कहकर कुत्ते को तिर्यच जाति के जीव को भी धर्म धारण करने का अधिकारी बनाकर सर्वोदय तीर्थ की स्थापना की है। अन्धविश्वास एवं पाखण्ड से रहित, अहिंसा, सत्य, यथार्थ विश्वास की स्वच्छ वायु में विचरण करने वाले शूद्र को भी देवपूज्यता से विभूषित किया। भिन्न विचारधारा वालों में भी समता एवं माध्यस्थ भाव का उद्घोष अर्थात् एक साथ रहने की कला का प्रकाश इस सर्वोदय तीर्थ का प्राण है। विरोध में अवरोध, मतभेद में अभेद भाव ही समस्त संघर्षो को समाप्त कर विश्वशान्ति व सह अस्तित्त्व स्थापित करने वाला है। खम्मामि सव्व जीवाणं - में सव्व शब्द का प्रयोग प्रकट करता है कि धर्म प्रवर्तन सर्वोदय सभी के हित के लिये ही है, किसी विशेष के लिये नहीं। आ० समन्तभद्र कहते हैं कि जगत में जितने प्राणी हैं, सबको, सबके भाग्य को, सबके पुण्य को आपके पादमूल में उदय मिलता है, अतः आपका तीर्थ सर्वोदय तीर्थ है। जगत के सभी प्राणी आपके पादमूल में रह सकते हैं। इन दो कारिकाओं के द्वारा आचार्यों ने कुछ अन्य दर्शनों से विचारों को भी नष्ट करने की कोशिश की है कि हम नित्यवादी नहीं, नित्य एकान्तवादी नहीं कि
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy