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________________ 32 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 अध्याय ९) इत्यादि। ३४. अर्धमागधी में पूर्वकालिक कृदन्त का प्रत्यय - इया, इयाण, च्चाणं, इयाणं तथा इत्ताणं का भी प्रयोग होता है। जैसे- आणिल्लियाणं, आसासिया, इत्यादि। ३५. पद्म शब्द का ‘पम्ह' रूप - अर्धमागधी में पद्म शब्द के ‘पउम' और 'पोम्म' के अतिरिक्त ‘पम्ह' रूप भी उपलब्ध होता है, जैसेपद्मलेश्या > पम्हलेस्सा इत्यादि। ३६. तकार का आगम- अर्धमागधी में हेम व्याकरण ८.१.१७७ द्वारा विहित मध्यवर्ती क्, ग् आदि के लोप होने पर शेष उद्वृत्त स्वर के स्थान में 'त्' का विधान प्राप्त हो जाता है। यहाँ हेम व्याकरण में 'अ' या 'आ' के बाद स्थित उवृत्त स्वर 'अ' या 'आ' हो तो उसे 'य' श्रुति होने का विधान है, किन्तु अर्धमागधी में 'त्' का विधान व्यापक रूप में (इ, उ, ए, ओ, के बाद भी) प्राप्त हो जाता है। जैसे- देवईए > देवतीते, धणवइ > धणवति, महत्तरगयं > महत्तरगतं, माआ > माता, मिइ > मिति, काइय > कातित, सामाइय > सामातित, पालइस्संति > पालतिस्संति, इत्थिओ > इत्थितो (अगस्त्यचूर्णि २.२), सयणाणि > सतणाणि (वही), आदि। ३७. अर्धमागधी में मध्यवर्ती ‘त्' और 'थ्' के बदले में 'द्' और 'ध्' के प्रयोग प्राप्त होते हैं। ३८. तृतीया विभक्ति ब० व० में विभक्ति प्रत्यय-'भि' प्राप्त हो जाती है। ३९. सर्वनाम शब्दों में सप्तमी वि० ए० व० में ‘म्हि' प्रत्यय भी प्राप्त होता है। ४०. स्त्रीलिंगी शब्दों के ए० व० में ‘य्' 'या', 'ये' विभक्तियाँ भी प्रयुक्त होती हैं। ४१. वर्तमान कृदन्त में 'मीन' प्रत्यय भी प्राप्त हो जाता है। डॉ. के. आर. चन्द्र ने अपनी पुस्तक 'प्राचीन अर्धमागधी की खोज में' उपर्युक्त विशेषताओं का सविस्तार चर्चा की है। उनका मन्तव्य है कि उपर्युक्त विशेषताओं में 'त्' और 'थ्' के बदले में 'द्' और 'ध्' के प्रयोग मागधी और शौरसेनी के अवश्य हैं परन्तु ऐसे प्रयोग कभी-कभी पालि में भी
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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