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________________ 16 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 भारतीय कला जगत में भित्ति चित्रण और लघु चित्रण की भूमिका • अस्मिता चौधरी (शोध छात्रा) भारतवर्ष में ऐतिहासिक काल के उपलब्ध सबसे प्राचीन चित्र भित्ति-चित्रों के रूप में प्राप्त होते हैं। इस काल के प्राचीनतम चित्र जोगीमारा के गुहा मन्दिर में प्राप्त होते हैं। ये भित्ति चित्र सम्पूर्ण भारत में यत्र-तत्र बिखरे हुये हैं। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के प्रारंभ के साथ ही चित्रकला के स्वर्णयुग का सूत्रपात हो जाता है और छठी शताब्दी तक अपने चरम सीमा तक पहुँचता है। जोगीमारा की कृतियों में यह स्वयं सिद्ध है। इस युग की कला कालसिद्ध कला है जो भारतवर्ष की प्राचीन संस्कृति एवं कला की अनुपम विरासत है। इस काल में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार प्रायः सम्पूर्ण भारतवर्ष में हो चुका था। धर्म के प्रचार प्रसार के लिये चित्रकला का जितना सहारा बौद्ध धर्मावलम्बियों ने लिया उतना उस युग में सम्भवतः और किसी ने नहीं लिया। जैन धर्मावलम्बियों ने भी कला के महत्व को स्वीकार किया किन्तु इनका ध्यान विशेष रूप से साहित्य रचना की ओर रहा। इन्हीं ग्रन्थों के मध्य में अच्छे चित्रों का अंकन कर उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावशाली बनाया। पर इस प्रकार की न जाने कितनी पोथियाँ और चित्रपट कब और कहाँ काल के गाल में समा गये इसका आंकलन उपलब्ध नहीं, लेकिन उनकी यह उत्कृष्ट परम्परा बनी रही। भारतवर्ष में शास्त्रीय युग की चित्रकला की विरासत भित्ति चित्रों के रूप में सुरक्षित है। इस प्रकार के भित्ति चित्र जोगीमारा, अजन्ता, बाघ, बदामी, सित्तन्नवासल, एलोरा, एलीफैन्टा, उदयगिरि, पीपलखोरा आदि गुफाओं में उपलब्ध है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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