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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 है। इसलिए कहा जाता है कि, “आचारो प्रथमः धर्म"। धर्म केवल जानने या मानने की वस्तु नहीं है, वह सम्यक् ढंग से जीवन जीने का एक तरीका
भी है। ___ अर्थऔर कामजीवन केएक आवश्यक अंगहै,उनकी संपूर्ति भी आवश्यक है, किन्तु उनका संयमन आवश्यक है।क्योंकि अर्थ और काम जीवन के साध्य नहीं है, साधन है। साधन आवश्यक होते हैं, किन्तु उनकी मूल्यवत्ता साध्य को पाने में निहित होती है। साधना को ही साध्य बना लेना या मान लेना ही जीवन की सबसे भयंकर भूल है, धर्म में इसे मिथ्यात्व कहा गया है। साधन को साध्य की प्राप्ति के लिए अपनाया है, किन्तु हमारी रागात्मकता या आसक्ति उसे साध्य मान लेती है और ऐसी में मूल लक्ष्य कहीं दृष्टि से ओझल हो जाता है।अर्थ और काम अर्थ और काम (रोटी, कपड़ा मकान आदि) मूलतः आत्म शान्ति के हेतु है, किन्तु जब व्यक्ति इन्हीं साधनों को ही साध्य बना लेता है, तो वह अपने मूल लक्ष्य आत्मतोष या आत्मशांति से वंचित हो जाता है।साधनों का अपनाना आवश्यक है, किन्तु ध्यान रहे कि ये साधन कहीं साध्य न बन जाये, अन्यथा तृष्णाजन्य दुःख के महासागर से पार जाना कठिन होगा।जीवन प्रबन्धन का मूल लक्ष्य भी एक ऐसी जीवन शैली का विकास करना है,जो मानव प्रजाति को सम्यक्सुख (आनन्द)और शांति प्रदान कर सके और उसका सम्यक् दिशा में आध्यात्मिक विकास होसकें और वह शाश्वत जीवन-मूल्य आत्मशांति को प्राप्त कर सकें।
- संस्थापक निदेशक, प्राच्य विद्यापीठ, दुपाड़ा रोड,
शाजापुर (म.प्र.)