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________________ अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 और पदार्थ दोनों को जानता है। इन्द्रियाँ केवल मूर्तद्रव्य की वर्तमान पर्याय को और वह भी अंश रूप में जानती हैं, जबकि मन मूर्त और अमूर्त (रूपी-अरूपी) पदार्थों के त्रैकालिक अनेक रूपों को जानता है, मन का कार्य विचार करना है। जिसमें इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण किये गये और ग्रहण नहीं किये गये सभी विषय आते हैं। उपसंहार : ___मध्य-बिन्दु है, जिसे केन्द्र बनाकर उन जीवों का समग्र जीवन-चक्र उसके इर्द-गिर्द घूमता है। मानव-जीवन का भी वास्तविक आकलन एवं मूल्यांकन मन के द्वारा ही होता है। मनुष्य-जीवन का यह केन्द्रीय तत्त्य है। जैसा मन होता है वैसा ही मनुष्य बन जाता है अर्थात् "जैसा मन, वैसा जीवन।” मन अशांत तो जीवन अशांत, मन शांत तो जीवन शांत। मन दुःखी तो जीवन दुःखी, मन सुखी तो जीवन सुखी। मन भोगी तो जीवन भोगी, मन योगी तो जीवन योगी। मन रागी तो जीवन रागी, मन वीतरागी तो जीवन वीतरागी। उपनिषद् में भी कहा है कि 'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः" इस प्रकार सम्पूर्ण उत्थान और पतन का कारण मन ही होता है। ***** संदर्भ सूची: १. न्यायसूत्र, १.१.१६ २. वात्स्यायन भाष्य, १.१.१६ ३. सुखाद्युपलब्धिसाधनमिन्द्रियं मनः। - तर्कसंग्रह ४. सन्मति प्रकरण टीका, काण्ड २ ५. विशेषावश्यकभाष्य, अहमदाबाद, भाई समरथ जैन श्वेताम्बर मू. शास्त्रोद्धार ट्रस्ट, वी.सं. २४८९, गाथा ३५२५ ६. षट्खण्डागम (धवला टीका) अमरावती सन् १९३६ पुस्तक १, सूत्र १.१.४, पृ. १५२ ७. बृहत् द्रव्यसंग्रह (सातवं संस्करण), आगास, सन् १९९९, प्रथम अधिकार, गाथा १२ की टीका, पृ. २४ ८. श्री यशोविजयगणि “जैनतर्कभाषा” अहमदनगर, सन् १९९२, पृ. ११ ९. धवलाटीका, भाग १, सूत्र १.१.३५, पृ. २५९-२६० १०. पं. सुखलाल संघवी, तत्त्वार्थसूत्र (हिन्दी विवेचन), वाराणसी पार्श्वनाथ विद्यापीठ, सन् २००७ (षट् संस्करण) पृ.५४ ११. युवाचार्य मधुकरमुनि, भगवती सूत्र भाग ३, श. उ. ७, सूत्र १०-११, पृ. ३२९ १२. मलयगिरि नंदीवृत्ति, श्रीमती आगमोदयसमितिः सन् १९८२, पृ. १७४ १३. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. १७४ १४. पारसमुनि, नंदीसूत्र, ब्यावर, पृ.७४
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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